Book Title: Jain Vidya 10 11
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 156
________________ 142 जैनविद्या जादं (जाद) भूकृ 1/1 अनि सयं (अ)=अपने आप समत्तं (अ)=पूर्ण णाणमणंतत्थवित्थडं [(णाणं) + (अणंत)+ (अत्थ) + (वित्थड)] णाणं (णाण) 1/1 [(अणंत) वि-(अत्थ)-(वित्थड) 1/1 वि] विमलं (विमल) 1/1 वि रहिय (रह) भूक 1/1 तु (अ)=और प्रोग्गहादिहिं [(प्रोग्गह) + (आदिहि) ] [ (प्रोग्गह)-(आदि) 3/2] सुहं (सुह) 1/1 ति (अ) = स्पष्टीकरण एगतियं (एगंतिय) 1/1 वि मणियं (भण) भूकृ 1/1। जं (ज) 1/1 सवि केवलं (केवल) 1/1 वि त्ति (अ) = स्पष्टीकरण गाणं (णाण) 1/1 तं (त) 1/1 सवि सोक्खं (सोक्ख ) 1/1 परिणम (परिणम) 2/1 च (अ) = निश्चय ही सो (त) 1/1 सवि चेव (अ)=ही खेदो (खेद) 1/1 तस्स (त) 6/1 स ण (अ) =नहीं मणिदो (भण) भूक 1/1 जम्हा (अ)=चूंकि घादी (घादि) 1/2 वि खयं (खय) 2/1 जादा (जा) भूकृ 1/2 । 1. कभी कभी द्वितीया का प्रयोग प्रथमा के स्थान पर होता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137 वृत्ति)। यहाँ 'परिणाम' का 'परिणमं किया गया है (हेम प्राकृण व्याकरण, 1-67)। यो (अ)=नहीं सद्दहति (सद्दह) व 3/2 सक सोक्खं (सोक्ख ) 1/1 सुहेसु (सुह) 7/2 परमं (परम) 1/1 वि विगदघादीणं [[ (विगद) भूकृ अनि-(घादि) 6/2] वि] सुणिदूरण (सुण) संकृ ते (त) 1/2 सवि अभव्वा (अभव्व) 1/2 वि भव्वा (भव्व) 1/2 वि वा (अ) =और तं (त) 2/1 सवि पडिच्छंति (पडिच्छ) व 3/2 सक । जेसि (ज) 6/2 स विसयेसु (विसय) 7/2 रदी (रदि) 1/1 तेसि (त) 6/2 स. दुक्खं (दुक्ख) 1/1 वियाण (वियाण) विधि 2/1 सक सन्भाव (सब्भाव). 2/1 जइ (अ)=यदि तं. (त) 1/1 सवि रण (अ)=नहीं हि (अ)=क्योंकि सम्मावं (सब्भाव) 2/1 वावारो (वावार) 1/1 पत्थि (अ)= नहीं विसयत्थं (विसय) चतुर्थी द्योतक 'अत्थं' लगाया गया है। 1. कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग प्रथमा के स्थान पर पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137 वृत्ति) सब्भाव (सद्भाव) =वास्तविकता तिमिरहरा [(तिमिर)1-(हर (स्त्री)→ हरा) 1/1 वि] जइ (अ) =यदि दिट्ठी (दिट्ठि) 1/1 जरणस्स (जण) 6/1 दीवेण (दीव) 3/1 एत्थि (अ) =नहीं कायव्वं (कायव्व) विधिक 1/1 अनि तह (अ) =उसी प्रकार सोक्खं (सोक्ख ) 1/1 सयमादा [(सयं) + (प्रादा)] सयं (अ)=स्वयं आदा (आद) 1/1 विसया (विसय) 1/1 कि (क) 1/1 सवि तत्थ (अ)=वहाँ पर कुवंति (कुव्व) व 3/2 सक ।

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