Book Title: Jain Vidya 10 11
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जैनविद्या
139
व्याकरणिक विश्लेषण
चारित्तं (चारित) 1/1 खलु (अ) =निस्सन्देह धम्मो (धम्म) 1/1 जो (ज) 1/1 सवि सो (त) 1/1 सवि समो (सम) 1/1 ति(अ)=निश्चय ही सिद्दिट्ठो (णिट्ठि) भूकृ 1/1 अनि मोहक्खोहविहीणो [(मोह)-(क्खोह)-(विहीण) भूकृ 1/1 अनि] परिणामो (परिणाम) 1/1 अप्पणो (अप्पण) 6/1 हु (अ)=ही।
जीवो (जीव) 1/1 परिणमदि (परिणम) व 3/1 अक जदा (अ)=जब सुहेण (सुह) 3/1 वि असुहेण (असुह) 3/1 वि वा (अ)=तथा सुहो (सुह) 1/1 वि असुहो (असुह) 1/1 वि सुद्धेण (सुद्ध) 3/1 वि तदा (अ)=तब सुद्धो (सुद्ध) 1/1 वि हवदि (हव) व 3/1 अक हि (अ) =निश्चय ही परिणामसम्भावो [(परिणाम)(स) वि-(ब्भाव) 1/1] ।
.. 1.
कभी-कभी तृतीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137)।
धम्मेण (धम्म) 3/1 परिणदप्पा [(परिणद) + (अप्पा)] [(परिणद) भूक अनि - (अप्प) 1/1] अप्पा (अप्प) 1/1 जदि (अ)=यदि सुद्धसंपयोगजुदो [(सुद्ध) वि(संपयोग)-(जुद) भूक 1/1 अनि] पावदि (पाव) व 3/1 सक णिव्वाणसुहं [(रिणव्वाण)-(सुह) 2/1] सुहोवजुत्तो [(सुह)-(उवजुत्त) भूक 1/1 अनि] व (अ) = तथा सग्गसुहं [(सग्ग)-(सुह) 2/1] ।
1.
कभी-कभी तृतीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है
(हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137)।
अइसयमादसमुत्थं [(अइसयं) + (आद) + (समुत्थं)] अइसयं (अइसय) 1/1 वि [ (पाद)- (समुत्थ) 1/1 वि] विसयातीदं [(विसय) + (अतीदं)] [विसय)(अतीद) 1/1 वि] अणोवममणतं [(अणोवमं) + (अणंत)] अणोवमं (अणोवम) 1/1 वि अणंतं (अणंत) 1/1 वि अव्वच्छिन्नं (अव्वुच्छिन्न) 1/1 वि च (अ)=तथा सुहं (सुह) 1/1 सुद्धवप्रोगप्पसिद्धाणं [(सुद्ध) + (उवप्रोग) + (प्पसिद्धाणं)] [(सुद्ध) वि - (उवप्रोग)-(प्पसिद्ध) भूक 6/2 अनि] ।

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