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वंदणीया गुणवादी
ण वि देहो वंदिज्जइ ण वि य कुलो ण वि य जाइसंजुत्तो।
को वंदमि गुणहीणो णहु सवणो णेव सावनो होइ । 27। -न शरीर की वन्दना की जाती है, न कुल की वन्दना की जाती है और न (उच्च) जाति से संयुक्त की वन्दना की जाती है। गुणहीन की वन्दना कौन करता है ? क्योंकि गुणों के बिना (वह) न मुनि होता है और न श्रावक होता है।
दंसरणरणारणचरिते तवविरणये रिगच्चकालसुपसत्था।
एदे दु वंदरणीया जे गुणवादी गुणधरारणं । 23। -जो दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप और विनय में निरन्तर लीन रहते हैं और गुणों के धारक प्राचार्य आदि का गुणगान करते हैं वे वन्दना करने योग्य हैं-पूज्य हैं।
दर्शनपाहुड