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नमः श्रीवीतरागाय ।
जैनसिद्धांतदर्पण ।
प्रथम अधिकार। (लक्षण, प्रमाण, नय, निक्षेप निरूपण)
मंगलाचरण । नत्वा वीरजिनेन्द्र, सर्वज्ञं मुक्तिमार्गनेतारम् । .
बालप्रबोधनार्थं जैन सिद्धान्तदर्पणं वक्ष्ये ॥ पदार्थोके विशेप खरूपका विचार लक्षण, प्रमाण, नय, निक्षेपके जाने बिना नहीं हो सकता, इस कारण पहले पहल इनका ही निरूपण किया जाता है, उसमें भी उद्देशके अनुसार सबसे पहले लक्षणका संक्षेप स्वरूप लिखा जाता है । .. "लक्ष्यते व्यावत्यते वस्त्वनेनेति लक्षणम्"-जिसके द्वारा
वस्तु अलग मालूम हों; इस निरुक्तिके अर्थको हृदयमें रख कर ही स्वामी श्रीअकलङ्कदेवने तत्त्वार्थवार्तिकालंकारमें यों कहा है कि " परस्परब्यतिकरे. सति येनान्यत्वं लक्ष्यते ..तल्लक्षणम् ।"