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[१७७] प्रथम कालकी आदिमें जीवोंकी आयु तीन पल्य प्रमाण है और अंतमें दो पल्य प्रमाण है। दूसरे कालके आदिमें दो पल्य और अन्तमें एक पल्य प्रमाण है । तीसरे कालकी एक पल्य और अन्तमें एक कोटि' पूर्व वर्ष प्रमाण है । चतुर्थ कालके आदिमें कोटिपूर्व और अन्तमें १२० वर्ष है । पांचवें कालके आदिमें १२० वर्ष, अन्तमें २० वर्ष है । छठे कालके आदिमें २० वर्ष और अन्तमें १५ वर्ष है । यह सत्र कथन उत्कृष्टकी अपेक्षासे है। वर्तमानमें कहीं कहीं एकसौ वीस वर्षसे अधिक आयुभी सुननेमें आती है सो हुंडावसर्पिणीके निमित्तसे है । अनेक कल्प काल बीतनेपर एक हुंडाकाल आता है इस हुंडाकल्पमें कई बातें विशेष होती हैं । जैसे चक्रवर्तीका अपमान, तीर्थकरके पुत्रीका जन्म और शलाका पुरुषोंकी संख्या में हानि । उसही प्रकार आयुके संबंधमें भी यह हुंडाकृत विशेषता है। पहले कालकी आदिमें मनुष्योंके शरीरकी ऊंचाई तीन कोश, अंतमें दो कोश है । दूसरेकी आदिमें दो कोश, अंतमें एक कोश है । तीसरेकी आदिमें एक कोश, अंतमें पांचसौ धनुप है । चौथे कालकी आदिमें पांचसौ धनुप, अंतमें सात हाथ है। पांचवेके आदिमें सात हाथ, अंतमें दो हाथ है । छठेके आदिमें दो हाथ, अंतमें एक हाथ है । इसही प्रकार वल वैभवादिकका क्रम जानना ।
भोगभूमियोंको भोजन वस्त्र आभूषण आदि समस्त भोगोपभोगकी सामग्री दशप्रकारके कल्पवृक्षोंसे मिलती है । भोगभूमिमें पृथ्वी दर्पणसमान मणिमयी छोटे छोटे सुगन्धित तृणसंयुक्त है । भोगभूमिमें माताके गर्भसे युगपत् स्त्रीपुरुपका युगल उत्पन्न होता है। भोगभूमिमें
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५ चौरासी लाख वर्षका एक पूर्वाग और चौरासी लाख पूर्वागका एक पूर्व होता है।
१२ ज.सि. द.