Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 147
________________ [१८३] 1 कि, सुमेरु पर्वत के चारों तरफ ११२१ योजनतक ज्योतिष्क विमानोंका सद्भाव नहीं है । मनुष्यलोकपर्यंत ज्योतिष्क विमान नित्य सुमेरुकी प्रदक्षिणा करते हैं । किन्तु जम्बूद्वीपमें ३६, लवण समुद्र में १३९, धातुकी खंडमें १०१०, कालोदधिमें ४११२० और पुष्करार्द्धमें ५३२३० ध्रुव तारे ( गतिरहित ) हैं । और मनुष्यलोकसे बाहर समस्त ज्योतिष्क विमान अवस्थित हैं। अपनी अपनी जातिके ज्योतिष्क विमान समतलमें हैं । अर्थात् उनका ऊपरी भाग आकाशकी एकही सतहमें हैं। ऊंचे नीचे नहीं है । किन्तु तिर्यक् अंतर कुछ न कुछ अवश्य है । तारोंमें परस्पर जघन्य अन्तर एक कोशका सातवां भाग है । मध्यम अन्तर पचास योजन और उत्कृष्ट अन्तर एक हजार योजन है । इन समस्त ज्योतिष्क विमानोंका आकार आधे गोलेके समान है। भावार्थ-जैसे एक लोहके गोलेके समान दो खण्ड करके उनमेंसे एक खंडको इसप्रकार से स्थापन करै कि, गोल भाग तो नीचेकी तरफ हो और समतलभाग ऊपरकी तरफ हो । ठीक ऐसा ही आकार समस्त ज्योतिष्क विमानोंका है। इन विमानोंके ऊपर ज्योतिपी देवोंके नगर वसते हैं । ये नगर अत्यन्त रमणीक और जिनमन्दिरसंयुक्त हैं । अब आगे इन विमानोंकी चौड़ाई और मोटाईका प्रमाण कहते हैं: --- ६१ चन्द्रमाके विमानका व्यास योजन ( एक योजनके इकसठ भागोंमेंसे छप्पन भाग ) है सूर्यका विमान योजन चौड़ा है । शुक्रका विमान एक कोश और बृहस्पतिका किंचिदून ( कुछ कम ) एक कोश चौड़ा है । तथा बुध मङ्गल और शनिके विमान आधआध कोश चौड़े हैं । तारोंके विमान कोई पावकोश कोई आधकोश कोई पौनकोश और कोई एक कोश चौड़े हैं। नक्षत्रोंके विमान एक एक 1

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