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दीखता नहीं है. इस कारण इस लोकका कर्ता कोई ईश्वर नहीं है, वस ! इससे सिद्ध हुवा कि लोकरूप कार्यका कोई बुद्धिमान् निमित्त कारण नहीं है. अथवा ईश्वर और सृष्टिमें कार्य कारण सम्बन्ध ही नहीं वनता क्योंकि व्यापकका अनुपलंभ है. भावार्थ-न्यायशास्त्रका यह वाक्य है कि “अन्वयव्यतिरेकगम्यो हि कार्यकारणभावः" अर्थात् कार्यकारणभाव और अन्वयन्यतिरेकभाव इन दोनोंमें गम्य. गमक याने व्याप्य व्यापक संबंध है. अग्नि और धूम इनमें व्याप्य व्यापक संबंध है. अग्नि व्यापक है और धूम व्याप्य है. जहां धूम होगा वहां अग्नि नियम करके होगी। परन्तु जहां अग्नि है वहां धूम हो भी और. नहीं भी हो. . जैसे तप्त लोहेके गोलेमें अग्नि तो है परन्तु धूम नहीं है. भावार्थ कहनेका यह है कि जहां व्याप्य होता है, वहां व्यापक अवश्य होता है. परन्तु जहां व्यापक होता है, वहां व्याप्य होता भी है और नहीं भी होता है. सो यहांपर कार्यकारणभाव व्याप्य है और · अन्वयव्यतिरेकभाव व्यापक है. भावार्थ-जहां कार्यकारणभाव होगा वहां अन्वयव्यतिरेक अवश्य होगा परन्तु जहां अन्वयव्यतिरेकभाव है, वहां कार्यकारण हो भी और नहीं भी हो. कार्यके सद्भावमें कारणके सद्भावको अन्वय कहते हैं. जैसे-जहां जहां धूम होता है, वहां वहां अग्नि अवश्य होती है और कारणके अभावमें कार्यके अभावको व्यतिरेक कहते हैं, जैसे जहां जहां अग्नि नहीं है वहां वहां धूम भी नहीं है । सो जो ईश्वर और लोकमें कार्यकारणसंबंध है तो उनमें अन्वयव्यतिरेक अवश्य होना चाहिये । परंतु ईश्वरका लोकके साथ व्यतिरेक सिद्ध नहीं होता क्योंकि व्यतिरेक दो प्रकारका है । एक कालव्यतिरेक दूसरा क्षेत्रव्यतिरेक । सो ईश्वरमें दोनों प्रकारके व्यति