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अव
अर्थ हो सकते हैं. सावयवत्व अर्थात् अवयवोंमें वर्तमानत्व १, -यवोंसे बनाया गया २, प्रदेशिपना ३ अथवा सावयव ऐसी बुद्धिका विषय होना ४.
इन चार पक्षोंमें आद्यपक्ष अर्थात् अवयवोंमें वर्तमान होना माना जावे तो अवयवोंमें रहनेवाली जो अवयवत्व नामक ( नैयायिकों कर मानी हुई) जाति उससे यह हेतु अनैकान्तिकनामक हेत्वाऽभास हो जायगा. क्योंकि, अवयवत्त्र जाति अवयवोंमें रहनेपरभी स्वयं अवयवरहित और अकार्य है. अर्थात् उस हेतुका विपक्षमें 'पाये जानेका नाम अनैकान्तिक दोष है. इसी प्रकार यहभी कर्तृविशेषजन्यत्वादि साध्यका विपक्ष जो नित्य जातिविशेष उसमें वर्तमान होनेसे अनैकान्तिक दोषयुक्त सिद्ध हुआ. इससे यह हेतु कर्तृविशेषजन्यत्त्व साधनेमें आदरणीय नहीं हो सकता. ( प्रथम यक्षका प्रथम भेद ) इसही प्रकार सावयवत्व अर्थात् प्रथम पक्षका द्वितीय भेद अर्थात् अवयवोंसे बना हुआ, यह अर्थ स्वीकार किया 'जावे तो कार्यत्वरूप हेतु साध्यसम नामक दोष सहित मानना पड़ेगा । ( यहभी एक पूर्ववत् हेतुका दोष है. जिससे कि हेतु साध्यसदृश सिद्ध होनेसे अपने कर्तृविशेषजन्यत्त्वरूप साध्यको सिद्ध नहीं कर सकता. ) क्योंकि पृथिव्यादिकोंमें कार्यत्व अर्थात् जन्यत्त्व सान्य, और परमाण्वादि पृथिव्यादिकोंके अवयवोंसे बनाया गया रूप हेतु दोनोंही सम हैं. और साधन यदि साध्यके समान हो तो कार्यको सिद्ध नहीं कर सकता. ( कार्यत्व हेतुके प्रथमपक्षका द्वितीय भेद ) प्रथमपक्षका तीसरा भेद अर्थात् प्रदेशवत्त्व माननेसेभी कार्यत्व हेतुमें आकाशके साथ अनैकान्तिक दोष आता है क्योंकि, आकाश प्रदेशचान् होकर भी अकार्य है. इसी प्रकार प्रथम पक्षके चतुर्थ भेदमें