________________ [ 235] सत्य है यह पाठकोंकी बुद्धिपर निर्भर करते हैं / ऐसा सकता कि, जगत्में यह स्वभाव नहीं हो सके और ईश्वरमें हो सके / यदि यह स्वभावही है तो कौन किसमें रोक (तदुक्तं स्वभावोऽतर्कगोचरः) / इस प्रकार कार्यत्व हेतुको विचारनेपरभी बुद्धिमान् ईश्वरको कर्ती मना नहीं सकता प्रकार सनिवेष विशेष अचेतनोपादानत्व अभूत्वाभावित्व, अन्यभी हेतु आक्षेपसमाधान समान होनेसे ईश्वरको कर्ता। कर सकते हैं। क्षित्यादिकोंको बुद्धिमत्कर्तासे जन्य बनानेके लिये बतलाये हेतुओंमें पूर्वोक्त दोषोंके अतिरिक्त अन्य प्रकारभी दोषोंकी हो सकती है तथाहि, पूर्वोक्त हेतु कुलालादि दृष्टान्तोंसे सशरीर र्वज्ञ असर्वकर्तृत्व आदि विरुद्धसाधक होनेसे विरुद्ध हैं / यदि अनुमानमेंभी कहा जाय कि, इतने विशेष धमोंकी समानता पर वन्हिकाभी अनुमान नहीं बन सकेगा सो यह कहना अनुमानमें दोषोत्पादक नहीं, क्योंकि वन्हिविशेष महानसीय ' वनोत्पन्न तृणोत्पन्न तथा पीत्पन्न आदि सभी वन्हि कहींपर होनेसे सर्व वन्हिमात्रमें धूमको व्याप्त निश्चय करनेसे धूम सामान्यवन्हिका अनुमापक हो सकता है तथा सर्व कार्योंमें मत्कर्तृता उपलब्ध नहीं होती जिससे कि, कार्यत्वहेतुको याव विशेपसे व्याप्त मानकर कार्यत्वहेतुकी बुद्धिमत्कर्तुजन्यत्वके व्याप्ति मान सकें / यदि कहो कि, सर्व जगतही उपलब्ध है उसका बुद्धिमत्कर्तासे उत्पन्न होना कैसे उपलब्ध कर सकते अतएव विना अवधारण कियेभी कहींपर कार्यको कासे देखकर सर्वत्र कार्यत्वहेतुकी बुद्धिमत्कर्तृजन्यताके साथ व्याप्ति