Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 148
________________ [ १८६ ] प्रमाणका भाग देनेसे वलयोंके अन्तरका प्रमाण आता है । इसको आधा करनेसे अभ्यन्तर बाह्यवेदी और प्रथम तथा अन्तिम वलयके.: अन्तरका प्रमाण होता है । पुष्करद्वीपके उत्तरार्द्धके प्रथम वलय में १४४. चंद्रमा हैं । द्वितीय तृतीयादिक वलयोंमें चार चार अधिक : हैं । पुष्करद्वीपके उत्तरार्द्धमें सब वलयोंके चन्द्रमाओंका जोड़ १२६४. होता है । पुष्कर समुद्रके प्रथम वलयमें २८८ चंद्रमा हैं । अर्थात् पुष्करके उत्तरार्द्धके वलयमें स्थित चंद्रमाओंसे दूने हैं । इसही प्रकार आगे स्वयंभूरमणसमुद्रपर्यन्त पूर्व पूर्व द्वीप वा समुद्रके प्रथम चलयस्थित चंद्रमाओंके प्रमाणसे उत्तर उत्तर द्वीप वा समुद्रके प्रथम वलयस्थित चंद्रमाओंका प्रमाण दूना है । तथा प्रथम प्रथम वलयोंके . चंद्रमाओंसे द्वितीयादिक वलयस्थित चंद्रमाओंकी संख्या सर्वत्र चार चार अधिक है । पुष्करसमुद्रमें ३२ वलय हैं । जिनके समस्त चंद्रमाओंका जोड़ ११२०० है । इससे अगले द्वीपमें ६४ बाल्या हैं, जिनके समस्त चंद्रमाओंका प्रमाण ४४९२८ है । भावार्थ- पूर्व पूर्व द्वीप वा समुद्रके चंद्रमाओं के प्रमाणसे उत्तरोत्तर द्वीप वा समुद्रके चंद्रमाओंका प्रमाण चौगुना चौगुना है । परन्तु इतना विशेष जानना कि, उत्तरद्वीप वा समुद्रके वलयोंके प्रमाणसे दूना प्रमाण उस: चौगुनी संख्या में और मिलाना चाहिये । जैसे पूर्व पुष्कर समुद्रके : चंद्रमाओंकी संख्या ११२०० जिसको चौगुना करनेसे ४४८००: हुए, इसमें उत्तरद्वीपके वलयोंके प्रमाण. ६४ के दूने १२८ मिलानेसे उत्तरद्वीपके चंद्रमाओंका प्रमाण ४.४९२८ होता है । इसही प्रकार आगे भी सर्वत्र जानना । समस्त द्वीपसमुद्रोंके समस्त चंद्रमाओंका प्रमाण संख्यातसूच्यंगुलसे जगच्छ्रेणीको गुणाकार करनेसे जो गुणनफल हो, उसको जगत्प्रतरमेंसे घटानेसे जो अवशेष रहै, उसमें 1

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