Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 158
________________ [ २०३ ] कल्पवृक्ष थोडे फल देने लगे और उन्हीमेंके ज्योतिरंग जातिके कल्प-वृक्षोंके मंदज्योति होनेकी बजहसे सायंकालके समय सूर्य चन्द्रमा व तारागण दीखने लगे । पुनः क्रमसे जो भोले जन्तु पहले मानिन्द शिशुगणके प्यारे थे और इधर उधर वन उपवन आदिमें क्रीडा वगैरह करते थे, उन्हीं रीछ भेडिया व्याघ्रोंके द्वारा सताया जाना,. सन्तानका मुख दीखना ( पहले नहीं दीखता था क्योंकि सन्तानके उत्पन्न होते ही पितामाता स्वर्ग सिधार जाते थे ) और फिर उनका. कुछ कालतक जीना फिर जेरसे सन्तान होना आदि अनोखी अनोखी और दिलको दहेलने व चोट पहुंचानेवाली बातें होने लगी, सबही घबडाने लगे, एक तरह भोगभूमिकी कायाही पलटने लगी । ऐसेही सयम में क्रम से प्रतिश्रुति आदि नाभिरायपर्यन्त १४ कुलकर पैदा हुए जो कि सम्यग्दृष्टी क्षत्रिय कुलोत्पन्न ( आगामी कालकी अपेक्षा अर्थात् जब वर्णव्यवस्था प्रारम्भ होगी उसमें क्षत्रियोंका जो भी कुलाचार वगैरह होगा उसही तरहके ये इसही समयमें थे इसलिये इनको क्षत्रिय कहा ) पैदा हुए जिनमें से कोई अवधि ज्ञानी और कितनेही जातिस्मरण ज्ञानवाले हुए उन्होंनेही इन विचारोंको ( जिन्हों-की राज्यपदसे च्युत होकर दीन बनानेके हुक्म सुननेसे जो पुरुषकी. हालत होती है हो रही थी ) यथायोग्य सव भयके दूर करनेवाले उपाय व आनेवाले जमानेके सब समाचारोंको बतला जतलाकर निराकुल किये और इस तरहके भयानक आपत्तिरूप समुद्र में गोता लगानेवालोंको हस्तावलम्बन देकर महान् उपकार किया । इस प्रकार होते होते अंतिम नाभिराय कुलकरके स्वामी - ऋषभनाथजीने जन्म :लिया जो कि जन्मसेही तीन ( मति, श्रुत, अवधि ) ज्ञानके धारी धैर्यशाली पराक्रमी सुडौल वज्रवृषभनाराचसंहननके धारी प्रियहित

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