Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 155
________________ [२०० उस कालको अवसर्पिणी काल कहते हैं । उत्सर्पिणी कालका प्रमाण दश कोडाकोड़ी सागर (दो हजार कोश गहरे और.दो हजार कोश चौडे गढेमें कैचीसे जिसका दूसरा खंड न हो सके ऐसे मेढेके वालोंको भरना, जितने बाल उसमें समावें उनमेंसे एक एक वाल सौ सौ वर्ष वाद निकालना जितने वर्षोंमें वे सब निकल जावे. उतने वर्षोंके जितने समय (जितकी देरमें मंद गतिसे चला हुआ एक परमाणु दूसरे परमाणुको उल्लंघन करै उसको समय कहते हैं) हों उसको व्यवहार पल्य कहते हैं । व्यवहारपल्यसे असंख्यात गुणा उद्धारपल्य होता है उद्धारपल्यसे असंख्यातगुणा अद्धापल्य होता है । दश कोड़ाकोड़ी (एक करोडको एक करोडसे गुणा करनेपर जो लब्ध हो उसको एक कोडाकोड़ी कहते हैं) अद्धापल्योंका एक सागर होता है) है और इसही तरह अवसर्पिणी कालकाभी प्रमाण दश कोडाकोड़ी सागर है, इन दोनोंकोही मिलकर एक कल्पकाल कहते हैं । इन दोनों ही प्रत्येकके छह भेद (सुषमासुषमा १ सुषमा २ सुपमादुषमा ३ दुषमासुषमा ४ दुषमा ५ .दुषमादुषमा ६) हैं। ये कहे हुए भेद अवसर्पिणी कालके जानना । और ठीक इनके उलटे छह भेद (दुषमादुषमा १ दुषमा २ दुषमासुषमा ३ सुषमादुषमा ४ सुषमा ५ सुषमासुषमा ६) उत्सर्पिणी कालके जानना इन छहों नामोंमें समा शब्द समयका वाची है और सु, दु ये दोनों अच्छे व बुरेके कहनेवाले दो उपसर्ग हैं इनकी मिलावट वगैरहसेही ए छह शब्द सार्थक छह कालके वाची हैं। . इन छहों कालमेंसे देवकुरु, उत्तरकुरु क्षेत्र (उत्तम भोगभूमि ) में पहलाकाल, हरि-रम्यक्क्षेत्र (मन्यम भोगभूमि.) में दूसरा काल, हैमवत-हैरण्यवतक्षेत्र (जघन्य भोगभूमि.) में तीसरा काल, और

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