________________
[ १८९] हैं । १ सौधर्म, २ ईशान, ३ सनत्कुमार, ४ माहेन्द्र, ५ ब्रह्म, ६ ब्रह्मोत्तर, ७ लांतव, ८ कापिष्ट, ९ शुक्र, १० महाशुक्र, ११ सतार, १२ सहस्रार, १३ आनत, १४ प्राणत, १५ आरण और १६ अच्युत । इन सोलह स्वगों से दो दो वर्गों में संयुक्त राज्य है। इस कारण सौधर्म ईशान तथा सनत्कुमार माहेन्द्र इत्यादि दो दो खौँका एक एक युगल है । आदिके दो तथा अन्तके दो इसप्रकार चार युगलोंमें आठ खाँके आठ इन्द्र हैं । और मध्यके चार युगलोंके चारही इन्द्र हैं । इसलिये इन्द्रोंकी अपेक्षासे खौके १२ भेद हैं | सोलह खौके ऊपर कल्पातीतमें तीन अधो ग्रैवेयक, तीन मध्यम अवेयक, और तीन उपरिम अवेयक, इसप्रकार नव प्रैवेयक हैं । नव प्रैवेयकके ऊपर नव अनुदिश विमान तथा उनके ऊपर पंच अनुत्तर विमान हैं । इसप्रकार इस ऊर्ध्वलोकमें वैमानिक देवोंका निवास है । सोलह वर्गों में तो इन्द्र सामानिक पारिषद आदि दश प्रकारकी कल्पना है । और कल्पातीतमें समस्त देवोंमें खामीसेवक व्यवहार नहीं हैं । इसलिये अहमिन्द्र हैं । मेरुकी चूलिकासे एक बालके ( केशके ) अन्तरपर ऋजुविमान है । यहीसे सौधर्म वर्गका प्रारंभ है । मेरुतलसे लगाकर डेड राजूकी ऊंचाई पर सौधर्म ईशान युगलका अन्त है । उसके ऊपर डेड राज्में सनत्कुमार माहेन्द्र युगल है । उससे ऊपर आधे आधे राजूमें छह युगल हैं । इसप्रकार छह राजूमें आठ युगल हैं । सौधर्म स्वर्गमें ३२ लाख विमान है। ईशानस्वर्गमें ढाई लाख, सनत्कुमारमें १२ लाख, माहेन्द्रमें ८ लाख,. ब्रह्मब्रह्मोत्तरयुगलमें४लाख, लांतवकापिष्टयुगलमें५०हजार, शुक्र महाशुक्र युगलमें ४० हजार, सतारसहस्रार युगलमें ६हजार और आनतप्राणत.तथा आरण और अच्युत इन चारों स्वर्गोमें सब मिलकर ७०० विमान हैं।