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बालक ४९ दिनमें क्रमसे यौवन अवस्थाको प्राप्त हो जाते हैं । भोगभूमिया सदाकाल भोगोंमें आसक्त रहते हैं तथा आयुके अंत में पुरुष छोंक लेकर और स्त्री जंभाई लेकर मरणको प्राप्त होते हैं । और उनका शरीर शरत्कालके मेघकी तरह विलुप्त हो जाता है । ये भोगभूमिया सवही मरणके पश्चात् नियमसे देवगतिको जाते हैं । प्रथमकालको आदिमें उत्कृष्ट भोगभूमि है । फिर क्रमसे घटकर द्वितीय कालकी आदिमें मध्यम तथा तीसरेकी आदिमें जघन्य भोगभूमि है । पुनः क्रमसे घटकर तीसरेके अंतमें कर्मभूमिका प्रवेश होता है । तीसरे कालमें जब पल्यका आठवां भाग बाकी रहता है, तव मनुष्योंमें क्रमसे १४ कुलकर उत्पन्न होते हैं । इन कुलकरोंमें कई जातिस्मरण तथा कई अवधिज्ञानसंयुक्त होते हैं । ये कुलकर मनुष्योंके अनेक प्रकारके भय दूर करके उनको उत्तम शिक्षा देते हैं. चतुर्थकालमें ६३ शलाका ( पदवीधारक ) पुरुष होते हैं । जिनमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९. नारायण, ९ प्रतिनारायण और ९ बलभद्र होते हैं । इन ६३ शलाका पुरुषोंका सविस्तर कथन प्रथमानुयोगके ग्रन्थोंसे जानना । यहां इतना विशेष हैं, कि इस दुर्गम संसारसे मुक्ति इस चतुर्थकालमेंही होती है । चोवीसवें तीर्थंकरके मोक्ष जानेस ६०५ वर्ष ५ मास पीछे पंचमकालमें शक राजा होता है । इस शक राजाके ३९४ वर्ष ७ मास पीछे कल्की राजा होता है । इस कल्कीकी आयु ७० वर्षकी होती है । जिसमें ४० वर्ष राज्य करता है । तथा धर्मविमुख आचरणमें तल्लीन रहता है । कल्कीका पुत्र धर्मके सन्मुख सदाचारी होता है । इसप्रकार एक एक हजार वर्ष पीछे एक एक कल्की राजा होता है । तथा इन. कल्कियोंके बीचबीचमें एक एक उपकल्की होता है। यहां इतना विशेष