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[७] (६) अथवा जैसे एक घट अनेक सम्बन्धोंक योगसे पूर्व, पर, अन्तरित, निकट, दूर, नवीन, पुराण, समर्थ, असमर्थ, देवदत्तकृत, धनदत्तस्वामिक, संख्यावान् , परिणामवान्, संयुक्त, विभक्त, पृथक् आदि अनेक नामधारक होता है; उसही प्रकार एकही जीव अनेक. सम्बन्धोंके योगसे पिता, पुत्र, स्वामी, सेवक, मामा, भानजा, सुसर,. जमाई, साला, बहनेऊ, देशी, विलायती आदि अनेक नामधारक होता है; इसलिये अनेकान्तात्मक है।
(७) अथवा जैसे देवदत्तके इन्द्रदत्तकी अपेक्षासे अन्यपना है। उसही प्रकार जिनदत्तकी अपेक्षासेभी अन्यपना है । परन्तु जो अन्यपना इन्द्रदत्तकी अपेक्षासे है वही अन्यपना जिनदत्तकी अपेक्षासे नहीं है। यदि दोनोंकी अपेक्षासे एकही अन्यपना मानोगे तो इन्द्रदत्त और जिनदत्तमें एकताका प्रसंग आवेगा । किन्तु जिनदत्त और इन्द्रदत्त भिन्न २ हैं। इस कारण दोनोंकी अपेक्षासे अन्यपनाभी भिन्न २ है । इसही प्रकार संसारमें अनन्त पदार्थ हैं । सो एक जीवके उन अनन्त पदार्थोकी अपेक्षास अनन्त अन्यत्व हैं जो ऐसा नहीं मानोगे. तो उन सत्र अनन्त पदार्थोक एकताका प्रसंग आवेगा । किन्तु वे अनन्त पदार्थ एक नहीं हैं; भिन्न २ हैं । इस कारण एकजीवमें अनन्त पदार्थोकी अपेक्षासे अनन्त अन्यत्व हैं; इसलिये अनेका-- न्तात्मक है।
(८) अथवा जैसे एक घट अनेक रंगोंके सम्बन्धसे लाल,. काली, पीली आदि अनेक अवस्थाओंको धारण करता हुआ अनेक. रूप होता है; उसही प्रकार एकजीव चारित्रमोहादिक कर्मके निमितसे, अविभागप्रतिच्छेदोंकी अपेक्षासे तीव्र, मंदादि अनन्त अवस्था