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धर्मद्रव्य निष्क्रिय होनेसे कदापि गतिरूप नहीं परिणमता है, और जो स्वयं गतिरहित है, वह दूसरेके गतिपरिणामका हेतुकर्त्ता नहीं हो सकता, किन्तु जीव मछलियोंको जलकी तरह पुद्गलके गमनमें उदासीन सहकारीकारण मात्र है । अथवा जैसे गतिपूर्वक स्थिति'परिणत तुरंग, असवार के स्थिति परिणामका हेतु कर्त्ता है, उस प्रकार अधर्म द्रव्य नहीं है । क्योंकि अधर्म द्रव्य निष्क्रिय होनेसे कदापि गतिपूर्वक स्थितिरूप नहीं परिणमता है, और जो स्वयं गतिपूर्वक स्थितिरूप नहीं है, वह दूसरेकी गतिपूर्वक स्थितिका हेतुकर्त्ता नहीं हो सकता । किन्तु जीव घोड़ेको पृथ्वीकी तरह पुद्गलकी गतिपूर्वक स्थिति में उदासीन सहकारी कारण मात्र है । यदि धर्म और अधर्म द्रव्य जीव और पुद्गलकी गति और स्थितिमें हेतुकर्त्ता न होते, तो जिनके गति है, उनके गति ही रहती स्थिति नहीं होती और जिनके स्थिति है उनके स्थिति ही रहती गति नहीं होती । किन्तु एक ही पदार्थके गति और स्थिति दोनों दीखती हैं, इससे सिद्ध होता है कि, धर्म और अधर्मद्रव्य जीव पुद्गलकी गतिस्थिति में हेतु - कर्त्ता नहीं हैं, किन्तु अपने स्वभावसे ही गतिस्थितिरूप परिणमें हुए जीव पुद्गलोंको उदासीन सहकारिकारण मात्र है ।
( शंका ) - धर्म और अधर्म द्रव्यके सद्भावमें क्या प्रमाण है ? ( समाधान ) - आगम और अनुमानप्रमाणसे धर्म और अधर्म द्रव्यका सद्भाव सिद्ध होता है । " अजीवकायाधर्माधर्माकाशपुद्गलाः " यह धर्म और अधर्मद्रव्यके सद्भावमें आगमप्रमाण है और अनुमानप्रमाणसे उनकी सिद्धि इस प्रकारसे होती है-अनुमानका लक्षण पहले कह आए हैं कि, साधनसे साध्यके ज्ञानको अनुमान कहते हैं । जो पदार्थ सिद्ध करना है, उसको साध्य कहते
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