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जीव और पुद्गल द्रव्यको गमनमें सहकारी धर्मद्रव्यके गतिसहकारित्व गुणमें अनेक प्रकार स्थितिरूपपरिणत जीव और पुद्गल द्रव्यको स्थितिमें सहकारी अधर्मद्रव्यके स्थितिसहकारित्व गुणमें, अनेक प्रकार पर्यायरूपपरिणत जीव और पुद्गलादिको परिणमनसहायी काल द्रव्यके वर्त्तनागुणमें, और अनेक अवस्थारूपपरिणत जीव और पुद्गलादि द्रव्योंके जाननेवाले. शुद्धजीवके केवलज्ञानगुणमें परप्रत्यय उत्पाद और व्यय होते हैं ।
( शंका ) - शुद्ध जीवके केवलज्ञान गुणमें उत्पादव्यय संभव नहीं. होते । क्योंकि केवलज्ञान त्रिकालवर्ती समस्त पर्यायोंको युगपत् जानता है । इसलिये जो उसने पहले जाना है । उसको ही पीछे जानता है ।
( समाधान ) - ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि यद्यपि केवलज्ञान समस्त पदार्थोंकी त्रिकालवर्ती पर्यायोंको युगपत् जानता है, तथापि प्रथम समयमें जिस पदार्थकी वर्त्तमान पर्यायको वर्तमान पर्यायरूप जानता है और आगामी पर्यायको आगामीरूप जानता है, द्वितीय समयमें उस ही पदार्थकी जिस पर्यायको प्रथम समयमें वर्तमानपर्यायरूप जाना था, उसको उस दूसरे समय में भूतपर्यायरूप जानता है, तथा जिस पर्यायको प्रथम समयमें आगामी पर्यायरूप जाना था, उस पर्यायको इस दूसरे समय में वर्त्तमान पर्यायरूप जानता है । इसलिये केवलज्ञानमें उत्पादव्यय अच्छी तरह घटित होते हैं ।
यह आकाशद्रव्य यद्यपि निश्चयनयकी अपेक्षासे अखंडित एक द्रव्य है, तथापि व्यवहारनयकी अपेक्षासे इसके दो भेद हैं । . १ लोकाकाश, और २ अलोकांकाश । भावार्थ: सर्वव्यापी अनंत अलोकाकाशके बिलकुल बीचमें कुछ भागमें जीव, पुद्गल,
धर्म, अधर्म और
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