Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 134
________________ [१७०] परिणामोंमें नित्य क्रूरता बनी रहती है। नरकोंकी : पृथ्वी महा. दुर्गन्ध और अनेक उपद्रवसहित होती है, नारकी जीवोंमें परस्पर जातिविरोध होता है । परस्पर एक दूसरेको नानाप्रकारके भयानक घोर दुःख देते हैं । छेदन भेदन ताडन मारण आदि. नानाप्रकारकी घोर वेदनाओंको भोगते हुए निरन्तर दुःसह दुःखका अनुभव करते रहते हैं । कोई किसीको कोल्हमें पेलता है, कोई गरम लोहेकी पुतलीसे आलिंगन कराता है तथा वज्राग्निमें पचाता है, अथवा पीपके कुंडमें पटकता है । बहुत कहनेसे क्या नरकके एक समयके दुःखको सहस्र जिव्हावाला भी वर्णन नहीं कर सकता । नरकमें समस्त कारण क्षेत्रस्वभावसे ही दुःखदायक होते हैं । एक दूसरेको देखते ही कुपित हो जाते हैं जो अन्य भवमें मित्र था, वह भी नरकमें शत्रुभावको प्राप्त होता है । जितनी जिसकी आयु है उसको उतने काल पर्यंत ये सब दुःख भोगने ही पड़ते हैं। क्योंकि नरकमें अकालमृत्यु नहीं है। जिस जीवने नरक आयुकी जितनी स्थिति बांधी है, उतने वर्ष पर्यन्त उसको नरकमें रहना ही पड़ता है। यहां इतना विशेष जानना कि, जिस जीवने आगामी भवकी नरकआयु बांधी है उस जीवके वर्तमान ( मनुष्य या तिथंच ) भवमें नरकायुकी स्थिती हीनाधिक हो सकती है, किन्तु नरक आयुकी स्थिती उदय आनेके पीछे हीनाधिक नहीं हो सकती । महापाके सेवन करनेसे यह जीव नरकको जाता है जहां चिरकालपर्यन्त घोर दुःख भोगने पड़ते हैं । इसलिये जो महाशय इन नरकोंके धोर दुःखोंसेः भयभीत हुए.हों, वे जूआ चोरी मद्य मांस वेश्या परस्त्री तथा शिकार आदिक महापापोंको दूरहीसे छोड देवें । अब आगे संक्षेपसे मध्यलोकका कथन करते हैं;

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