Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 136
________________ [१७२] दक्षिण दिशाके प्रथमभागका नाम भरतक्षेत्र, द्वितीय भागका नाम हैमवत और तृतीय भागका नाम हरिक्षेत्र है । इसही प्रकार उत्तर "दिशाके प्रथम भागका नाम ऐरावत, द्वितीय भागका नाम हैरण्यवत और तृतीय भागका नाम रम्यकक्षेत्र है । मध्य भागका नाम विदेहक्षेत्र है । भरत-क्षेत्रकी चौड़ाई ५२६६. योजन है अर्थात् जम्बूद्वीपकी चौड़ाईके एक लक्ष योजनके १९० भागोंमेंसे एक भाग प्रमाण है । हिमवत् पर्वतकी आठ भाग प्रमाण, हरिक्षेत्रकी १६ भाग प्रमाण और निषध पर्वतकी ३२ भाग प्रमाण है । मिलकर ६३ भाग प्रमाण हुए । तथा इसही प्रकार उत्तर दिशामें ऐरावत क्षेत्रसे लगाकर नीलपर्वततक ६३ भाग हैं । सब मिलकर १२६ भाग हुए । तथा मध्यका विदेहक्षेत्र ६४ भाग प्रमाण है । ये सब भाग मिलकर जम्बूद्वीपकी चौड़ाई १९० भाग अथवा एक लक्ष योजन . प्रमाण होती है। हिमवन् पर्वतकी ऊंचाई १०० योजन, महाहिमवन्की २०० - योजन, निषधकी ४००, नीलकी ४००, रुक्मीकी २००, और शिखरीकी ऊंचाई १०० योजन है । इन सब कुलाचलोंकी चौड़ाई ऊपर नीचे तथा मध्यमें समान है । इन कुलाचलोंके पसवाड़ोंमें अनेक प्रकारकी मणियां हैं । ये हिमवदादिक छहों पर्वत क्रमसे सुवर्ण, चांदी, तपे हुए सुवर्ण, वैडूर्य, चांदी और सुवर्णके हैं । इन हिमवदादि छहों कुलाचलोंके ऊपर क्रमसे पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक संज्ञक छह कुण्ड हैं । इन पद्मादिक कुण्डोंकी क्रमसे लंबाई १०००।२०००१४०००१४००० . २००० और १००० योजन है । चौड़ाई ५००१०००१२००० २०००११००० और ५०० योजन है। गहराई १०१२०१४०४.० .

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