Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 126
________________ [ १६०] नहीं है । क्योंकि जैसे जलमें यह शक्ति है कि, हंस जलमें आवै . तो उसे अवकाश देवे, परन्तु किसी जलमें यदि हंस. आकर प्रवेश न करे, तो उस हंसके अभावमें जलकी अवकाश देनेकी शक्तिका. अभाव नहीं हो जाता है । इसी प्रकार अलोकाकाशमें यदि अन्य द्रव्य नहीं हैं, तो अन्यद्रव्योंके अभाव होनेसे आकाशकी अवकाश-: • दातृत्वशक्तिका अभाव नहीं हो सकता। यह आकाशका स्वभाव है और स्वभावका कभी अभाव नहीं होता । इसलिये लक्षणमें अव्यासिदोष नहीं है । तथा असंभवदोषका भी संभव नहीं है । इसलिये उक्त लक्षण त्रिदोषवर्जित समीचीन है। (शंका)-आकाशके सद्भावमें क्या प्रमाण है ? . . . . . .. (समाधान)-जितने शब्द होते हैं, उनका कुछ न कुछ वाच्य अवश्य होता है आकाश भी एक शब्द है, इसलिये इस आकाश शब्दका जो वाच्य है, वही आकाशद्रव्य है । (शंका)-खरविषाण (गधेके सींग) भी शब्द है, तो इसका भी कोई वाच्य अवश्य होगा। (समाधान)-खरविषाण कोई शब्द नहीं है, किन्तु एक शब्द खर है और दूसरा शब्द विषाण है । इसलिये खरका भी वाच्य है । परन्तु खरविषाण समासान्त पदका कोई वाच्य नहीं है। अथवा यदि कोई खर (गधा ) मरकर बैल होवे, तो भूतनैगमनयकी अपेक्षासे उस बैलको खर कह सकते हैं । और विषाण उसके हैं ही, इसलिये कथंचित् खरविषाणका भी वाच्य है। . . . . . .; (शंका )-आकाश कोई द्रव्य नहीं है क्योंकि आकाशमें द्रव्यंका लक्षण उत्पादव्ययध्रौव्य घटित नहीं होता।

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