Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 130
________________ [१६६] अन्ततक एक रान है ! इन्ही प्रकार जेनी है । अर्थात् नीतरच अंने जोयाले ततक, वैयाके से पांव तक, पांवकि. तने उहले संजतक और व्हीके भन्न सातवीक तक एक एक गन् है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी २४००० योजन मोरे. पांची धमग्रमा २०००० योजन नोगे ही तनःप्रना १६००० योजन और साली महानःप्रन ८०० बजन नोंडी है । सातवी पृांक नीचे एक राजू प्रनाग आकाश नियोज्ञानिक जीवाल भर हुआ है । वहां कोई पृी नहीं है । इन सालों पुलियान कमले धनी, वंश, नेका, संजना, अस्टिा, नवी और नावनी भी अनाविप्रनिद नान हैं। पहली स्नाना पृथियो तीन भाग है-१ खरनाग, २ यंत्रमाग और ३ सञ्चालन | भागको नोबई १६००० योजन, पंकनागको मोडाई ८४००० योजन और अञ्चहुल नागकी मोटाई ८०००० योजन है। जीवले दो नेद हैं, संसारी और दुल । जिनसे मुजजीव बेकले शिखरपर निवास करते हैं और सारी जीका निवासक्षेत्र सन्त लोश है । संसारी जात्रोके चार नेद हैं-देव, न्नुन्य, तिव और नारी । देवोंक वार नेद हैं-१ नवनवानी, २ मन्तर, ३ मोतिया, और ? वैनानिक । नवनशानियाले दश नेद हैं१ बटुकुनार, २ नानार, ३ विगुल्दुलार, १ सुवर्णकुमार... ५ निगुनार६ वातजुनार, ७ जनितकुनार, ८ उत्रिकुना, ९ होपकुमार और १० दिक्कुमार । व्यंजराज नेद हैं-१ किलर.. ' २ जिपुत्प, ३ नहोराण, १ गई ५ १६, ६ राक्षात, ७ भूत, और ८ विनाचा । पहली पृथ्वीके खरमागर्ने बहसुनारले छोड़कर

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