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खप्नविषयक पदार्थोंके समान विज्ञानही खयं क्रमसे उन अनेकः अक्षरस्वरूप परिणमै है इसलिये अनेक समयवर्ती विज्ञानोंका समूहही. जीवशब्द है । स्वयं जीवशब्द कोई भिन्न पदार्थ नहीं है, इन विज्ञानोंमेंसे प्रत्येक विज्ञान क्षणिक है अर्थात् प्रतिसमय नाशमान है और. प्रतिसमय प्रत्येक पदार्थवशवी है अर्थात् प्रतिसमय प्रत्येक पदार्थरूप परिणमै है, इसलिये एक विज्ञान अनेक समयवर्ती पदार्थोंका प्रतिभासक नहीं होसक्ता; जीवशब्द अनेक अक्षरोंका समूह है तथा वे अक्षरक्रमसे उच्चारित हैं और वे प्रत्येक अक्षर प्रत्येक समयवर्ती विज्ञानस्वरूप हैं और विज्ञान प्रतिसमय नाशमान् है इसलिये जीवशब्द कोई पदार्थही नहीं होसक्ता क्यों प्रथम समयवर्ती प्रथम अक्षररूप विज्ञानका, द्वितीयादि समयवर्ती द्वितीयादि अक्षररूप विज्ञानके समयमें अभाव है इसलिये जीवशब्द कोई पदार्थही सिद्ध नहीं होसक्ता ( समाधान ) ऐसा नहीं होसक्ता क्योंकि ऐसा माननेसे लोक प्रसिद्ध शब्द और अर्थके वाच्यवाचक सम्बन्धके अभावका प्रसंग आवैगा, और ऐसा होनेसे लोकव्यवहारमें विरोध आवैगा, तथा तुम्हारा जो नास्तित्वपक्ष है उसकी परीक्षा तथा साधनभी नहीं होसक्ता क्योंकि परीक्षा और साधन शब्दाधीन हैं और शब्दको तुम कोई पदार्थही नहीं मानते इसलिये तुम्हारा पक्षही सिद्ध नहीं होसक्ता, इस कारण कथंचित् जीव अस्तिस्वरूप है कथंचित् नास्तिस्वरूप है ऐसा अवश्य मानना चाहिये क्योंकि द्रव्यार्थिकनय पर्यायार्थिकनयको अपनाती हुई प्रवर्ते है और पर्यायार्थिकनय द्रव्यार्थिकनयको अपनाती हुई ( अपेक्षा रखती हुई ) प्रवर्ते है।
अब अवक्तव्यस्वरूप तीसरे भंगका स्वरूप लिखते हैं.. द्रव्यार्थि