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[१४४] दिक गुणोंका उत्पाद और व्यय होता है, इसलिये परमाणु कथंचित् अनित्य भी हैं । तया अणुक आदिक्की तरह संघातरूप कार्यके अभावसे परमाणु कारणस्वरूप भी है और द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे परमाणुकी न कभी उत्पत्ति होती है और न कभी नाश होता है इसलिये कथंचित् नित्य भी है । निरवयव होनेसे परमाणुसे एकरस, एकवर्ण और एकगन्ध है । जो सावयव होते हैं, उनके ही अनेक रस आदिक होते हैं । जैसे आनादिकके अनेक रस मयूरादिकके अनेक वर्ण और अनुलेपादिकके अनेक गन्ध हैं । एकप्रदेशी परमाणुके . अविरुद्ध दो स्पर्श होते हैं । अर्थात् शीत और उष्ण इन दोमेसे एक तथा स्निग्ध और लक्ष इन दोमेंसे एक, इस प्रकार दो अविरुद्ध स्पर्श होते हैं । एकप्रदेशी परमाणुके परस्परविरुद्ध शीत और उष्ण तथा स्निग्ध और रूक्ष दोनों युगपत् नहीं हो सकते, दोनोंमेंसे एक एक ही होता है । गुरु, लघु, मृद्ध और कठिन ये चार स्पर्श परमाणु
ओंमें नहीं, किन्तु स्कन्धोंमें होते हैं । यद्यपि परमाणु, इन्द्रियोंके गोचर (विषय) नहीं हैं, तथापि घट, पट, शरीरादिक कार्यके देखनेसे कारणरूप परमाणुओंके अस्तित्वका अनुमान होता है । क्योंकि कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति नहीं हो सकती । परमाणु कारणादि अनेक विकल्परूप अनेकान्तात्मक है । भावार्थ-परमाणु घणुक आदिक स्कन्धोंकी उत्पत्तिका निमित्त है इसलिये कथंचित् कारण है, स्कन्धोंके भेद (खंड) होनेसे उत्पन्न होता है, इसलिये कथंचित् कार्य है, स्कन्धोंका विभाग होते होते परमाणु होता है, और परमाणुका पुनः विभाग नहीं होता इसलिये कथंचित् अन्त्य है, स्पर्शादिक
गुणोंका समुदाय है, सो ही परमाणु है इसलिये एक परमाणु स्पर्शा.. दिक अनेक भेदखल्प है इसलिये कथंचित् अन्त्य नहीं है,