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सकता है । क्योंकि ज्ञानं ज्ञेयका परिच्छेदक ( भिन्न करनेवाला ).. है । इस प्रकार मैदएकान्तमें अनेक दोष आतें हैं । ( तथा उभय-एकान्त और अवाच्यएकान्तमें त्रिविरोधादिक दोष पूर्ववत् लगा लेना.. और इस ही प्रकार आगे भी घटित कर लेना ।) इसलियें वस्तुका स्वरूप कथंचित् अभेद रूप हैं, कथंचित् भेदरूप है । अपेक्षाके. चिनां भेदं तथा एक भी सिद्ध नहीं हो सकते । भावार्थ- सत्तासामान्यकी अपेक्षा होनेपर अभेदविवक्षासे समस्त पदार्थ अभेदस्वरूपः हैं, तथा द्रव्य, गुण, पर्याय अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा होनेपर भेदविवक्षा होनेसे समस्त पदार्थ भेदस्वरूप हैं । इस प्रकार नित्यएकान्त अनित्यएकान्त आदिक अनेक एकान्तपक्ष हैं जिनमें . अनेक दोष आते हैं । इसका सविस्तर कथन अष्टसहस्री में किया है:वहांसे जानना चाहिये ।
इस प्रकार जैनसिद्धान्तदर्पणग्रंथ में द्रव्यसामान्यनिरूपणदामंक द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ ।
तीसरा अधिकार अजीवद्रव्यनिरूपण )
पहले अधिकारमें द्रव्य सामान्यका निरूपण हो चुका; अब द्रव्य विशेषका निरूपण करनेका समय है । परन्तु द्रव्यविशेषका स्वरूप अलौकिकगणितके जाने विना अच्छी तरह समझमें नहीं आसकता । क्योंकि द्रव्योंका छोटापन और वड़ापन, तथा गुणोंकी मन्दता और तीव्रता और कालेका परिमाण आदिकका निरूपण.. पूर्वाचायोंने अलौकिंकगणितके द्वारा ही किया है । इसलिये द्रव्यं-