Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 104
________________ [१२५] होनेपर शलाका राशिमेंसे एक एक घटाते घटाते जब यह द्वितीयः वार स्थापन की हुई शलाका राशि भी समाप्त हो जाय, उस समय । इस अन्तकी गुणनफलरूप महाराशि प्रमाण पुनः विरलन, देय,. और शलाका ये तीन राशि लिखनी । पूर्वोक्त क्रमानुसार जब यह तीसरी वार स्थापन हुई शलाकाराशि भी समाप्त हो जाय, उस समय यह अन्तिम गुणफलरूप जो महाराशि हुई, वह असंख्यातासंख्यातका एक मध्यम भेद है। . . ___ कथित क्रमानुसार तीन वार तीन तीन राशियोंके गुणनविधानको. शलाकात्रयनिष्टापन कहते हैं । आगे भी जहां 'शलाकात्रयनिष्ठापन' ऐसा पद आवे, वहां ऐसा ही विधान समझ लेना । इस महाराशिमें, लोक प्रमाण (लोकका प्रमाण उपमा मानके कथनमें किया जायगा), १ धर्म द्रव्यके प्रदेश, २ लोक प्रमाण अधर्मद्रव्यके प्रदेश, ३ लोक प्रमाण एक जीवके प्रदेश, ४ लोकप्रमाण लोकाकाशके प्रदेश,. ५ लोकसे असंख्यातगुणा अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक जीवोंका प्रमाण (इसका स्वरूप आगे कहेंगे), और ६ उससे भी असंख्यातलोकगुणा तथापि सामान्यतासे असंख्यातलोकप्रमाण प्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक जीवोंका प्रमाणं, यै छह राशि मिलाना । इस योगफल प्रमाण विरलन, देय और शलाका, ये तीन राशि . स्थापन कर पूर्वोक्तनुसार शलाकात्रयनिष्टापन करना । इस प्रकार करनेसे. जो महाराशि उत्पन्न हो, उसमें १ वीस कोडाकोड़ि सागर : (इसका.. स्वरूप आगे कहेंगे), प्रमाण कल्पकालके समय, २ असंख्यात लोकप्रमाणस्थितिबन्धाध्यवसायस्थान (स्थितिबन्धको कारणभूत आत्माके. परिणाम ), .३ इनसे भी असंख्यात लोक गुणें तथापि असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसायस्थानः (अनुभाग बन्धको कारण

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