________________
[१२८] स्वरूप पूर्वाचार्योंने इसप्रकार कहा है । पुद्गलके सबसे छोटे खंडको परमाणु कहते हैं । अनन्तानन्त परमाणुओंके स्कन्धको अवसनासन्न कहते हैं । आठ अवसन्नासनका एक सन्नासन्न, आठ सन्नासन्नका एक तृटरेणु, ८ तृटरेणुका एक त्रसरेणु, ८ त्रसरेणु एक रथरेणु, ८ रथरेणुका एक उत्तम भोगभूमिवालोंका वालाग्र, ८ उत्तमभोगभूमिबालोंके वालाग्रका एक मध्यमभोगभूमिवालोंका वालाग्र, ८ मध्यमभोगभूमिवालोंके वालाग्रका एक जंघन्यभोगभूमिवालोंका वालाग्र, ८ जघन्य भोगभूमिवालोंके वालाग्रका एक कर्मभूमिवालोंका वालाग्र, ८ कर्मभूमिवालोंके वालाग्रकी एक लीख, आठ लाखोकी एक सरसों, आठ सरसोंका एक जौ, और आठ जौका एक अंगुल होता है । इस अंगुलको उत्सेधांगुल कहते हैं। चतुर्गतिक जीवोंके शरीर और देवोंके नगर और मन्दिरआदिकका परिमाण इस ही अंगुलसे वर्णन किया जाता है । इस उत्सेधांगुलसे पांचसो गुणा प्रमाणांगुल (भरतक्षेत्रके अवसर्पिणीकालके प्रथम चक्रवर्तीका अंगुल) है । इस प्रमाणांगुलसे पर्वत नदी द्वीप समुद्र इत्यादिकका प्रमाण कहा जाता है । भरत ऐरावत क्षेत्रके मनुष्योंका अपने अपने कालमें जो अंगुल है, उसे आत्मांगुल कहते हैं । इससे झारी कलश धनुष् ढोल हलमूशल छत्र चमर इत्यादिकका प्रमाण वर्णन किया जाता. है । ६ अंगुलका एक पाद, २. पादका एक विलस्त, २ विलस्तका एक हाथ, ४ हाथका एक धनुष, २००० धनुष्का एक कोश,
और चार कोशका एक योजन होता है । प्रमाणांगुलसे निप्पन्न एक योजन प्रमाण गहरा और एक योजन प्रमाण व्यासंबाला एक गोल गर्त (गढ़ा) बनाना : उस गर्तको उत्तमभोगभूमिवाल मेंढेके वालोंके अग्रभागोंसे भरना 1. गणित करनेसे उस गर्त्तके रोमोंकी संध्या