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भावका अभाव है उसही प्रकार अभावकेभी अभावका प्रसंग आवेगा और ऐसा होनेसे आकाशके पुष्पोंकाभी सद्भाव ठहरेगा. इसही प्रकार भाव एकान्तमेंभी लगाना, इसलिये भाव स्यात् है स्यात् नहीं है तथा अभावभी स्यात् है स्यात् नहीं है इसही प्रकार जीवभी स्यात् है स्यात् नहीं है ऐसा निश्चय करना योग्य है. _ (शंका ) विधि होते संतेही निषेवकी प्रवृत्ति होती है इस . न्यायसे जब जीवमें पुद्गलादिककी सत्ता प्राप्तही नहीं है तो उसका निषेध करनेका क्या प्रयोजन ? अर्थात् जब जीवोनास्ति इस पदका यह अर्थ है कि, जीवमें पुद्गलादिककी सत्ता नहीं है तो जब जीवमें 'पुद्गलादिककी सत्ताकी प्राप्तिही नहीं तो निषेध क्यों (समाधान) जीवभी पदार्थ है और पुद्गलादिकभी पदार्थ हैं इसलिये पदार्थ सामान्यकी अपेक्षासे जीवमें पुद्गलादिक समस्त पदार्थोका प्रसंग - संभवही है, परन्तु पदार्थ विशेषकी अपेक्षासे जीव पदार्थके अस्तित्वका स्वीकार और पुद्गलादिकके अस्तित्वके निपेघसेही जीव स्वरूपलाभको प्राप्त होसक्ता है अन्यथा यह जीवही नहीं ठहरेगा क्योंकि जब पुद्गलादिकके अस्तित्वका निषेध नहीं है तो जीवमें पुद्गलादिककाभी ज्ञान होने लगेगा और ऐसी अवस्थामें एकही पदार्थमें समस्त पदार्थोंका बोध होनेसे व्यवहारके लोपका प्रसंग आवेगा. सिवाय इसके जीवमें जो पुद्गलादिकका अभाव है सो जीवकाही धर्म है नकि पुद्गलादिकका, क्योंकि जैसे जीवका अस्तित्व जीवके आधीन होनेसे जीवका धर्म है उसही प्रकार पुद्गलादिकका अभावभी जीवके आधीन होनेसे जीवकाही. धर्म है इसलिये जीवकी स्वपर्याय है, परन्तु पुद्गलादिकपरसे विशेष्यमाण है इसलिये उपचारसे परपर्याय है,