Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 83
________________ [ ९० ] - बालवृद्धादिपनेसे अथवा अन्यद्रव्यगतरूपरसादिपनेसे भी हो तो यह मनुष्यही नहीं ठहरै क्योंकि ऐसा होनेसे मनुष्यके सर्व भावस्वरूप होनेका प्रसंग आवेगा, इसलिये स्यादस्तिं स्यान्नास्ति ये दो वाक्य सिद्ध होते हैं । भावार्थ - जीवके स्वसत्ताका सद्भाव और परसत्ताका अभाव है इसलिये स्यादस्तिस्वरूप है स्यान्नास्तिस्वरूप है, क्योंकि स्वसत्ताका ग्रहण और परसत्ताका त्याग यही वस्तुका वस्तुत्व है यदि स्वसत्ताकाभी ग्रहण न होय तो वस्तुके अभावका प्रसंग आवेगा,. तथा जो परसत्ताका त्याग न होय तो समस्तं पदार्थ एकरूप हो जांयगे, अर्थात् जो, जीव परसत्ताके अभावकी अपेक्षा न रक्खै तो . जीव, जीव न ठहरेगा, क्योंकि सत्स्वरूप होते संते विशेषस्वरूपसे अनवस्थित है । भावार्थ -- जैसे महासत्ता सत्स्वरूप होकर विशेपस्वरूपसे अनवस्थित होनेसे सामान्यपदवाच्यहीं 'होसक्ती है उसी प्रकार जीवभी परसत्ताके अभावकी अपेक्षा न रखनेपर सत्स्वरूप होकर विशेष स्वरूपसे अनवस्थित होनेसे सन्मानही ठहरेगा, जीव नहीं ठहरेगा. तथा जीवके परसत्ताके अभावकी अपेक्षा होते संतेंभी यदि स्वसत्तापरिणतिकी अपेक्षा न करे तोभी उसके वस्तुत्व अथवा जीवत्व नहीं ठहरेगा, क्योंकि स्वसत्ताकाभी अभाव और परसत्ताकाभी अभाव होते संते आकाशपुष्पके समान शून्यताका प्रसंग आवेगा । इसलिये ' परसत्ताका अभावभी अस्तित्वस्वरूपके समान स्वसत्ताके सद्भावकी अपेक्षा रखता है अर्थात् जैसे अस्तित्वस्वरूप, अस्तित्वस्वरूपसे है,नास्तित्वस्वरूपसे नहीं है उसही प्रकार परसत्ताका अभावभी स्वसत्ताके सद्भावकी अपेक्षा रखता है, इसलिये जीव स्यादस्ति और स्यान्नास्तिस्वरूप है. यदि ऐसा नहीं मानोगे तो वस्तुके अभावका प्रसंग आवेगा । उसका खुलासा इस प्रकार है कि, अभाव समस्त " •

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