Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 82
________________ [८९] जलधारणका प्रसंग आवेगा । तथा. जिसप्रकार नवीनपनेसे घट है उसही प्रकार पुराण तथा समस्तस्पर्शरसगन्धवर्णादिपनेसेभी हो तो वह घटही नहीं ठहरेगा क्योंकि ऐसा माननेसे घटके सर्व भावखरूप होनेका प्रसंग आवेगा, जैसे भाव स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, पृथु, महान् , -हस्त्र, पूर्ण, रिक्त आदि अनेक स्वरूप होता है, ऐसाही घट ठहरेगा परन्तु भाव, घट नहीं है इसलिये घटभी घट नहीं ठहरेगा. इसही प्रकार जीवपरभी लगाना अर्थात् मनुष्यजीवके स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावकी अपेक्षासेही आस्तित्व है, परद्रव्यादिकी अपेक्षा अस्तित्व नहीं है, यदि परद्रव्यादिकी अपेक्षासेभी मनुष्यका अस्तित्व हो, तो खरविपाणवत् मनुष्यका अभावही ठहरेगा, अथवा अनियत द्रव्यादिस्वरूपसे सामान्य पदार्थका प्रसंग आवेगा, जैसे महासामान्यका कोई नियत द्रव्यादि नहीं हैं उसही प्रकार मनुष्यकाभी नियत द्रव्यादि न होनेसे मनुष्य, सामान्य ठहरेगा. भावार्थ-जैसे मनुष्य, जीवद्रव्यपनेसे है उसही प्रकार यदि पुद्गलादिपनेसेभी हो तो यह मनुष्यही नहीं ठहरै, क्योंकि ऐसा होनेसे पुद्गलादिमेंभी मनुष्यपनेका प्रसंग आवेगा. तथा जैसे इस क्षेत्रस्थपनेसे मनुष्य है उसही प्रकार यदि अन्यक्षेत्रस्थपनेसेभी होय तो यह मनुष्यही नहीं ठहरै, क्योंकि ऐसा न होनेसे आकाशवत् सर्वगतपनेका प्रसंग आवेगा. तथा जैसे वर्तमानकालकी अपेक्षासे मनुष्य है उसही प्रकार यदि नरकादि अतीत और देवादि अनागतकालपनेसेभी होय तो वह मनुष्यही नहीं ठहरै, क्योंकि ऐसा होनेसे सदाकाल मनुष्यपनेका प्रसंग आवेगा, अथवा जैसे वर्तमानक्षेत्रकालकी अपेक्षासे हमारे प्रत्यक्ष है उसही प्रकार अन्यक्षेत्र तथा अतीत अनागतकालमेंभी हमारे प्रत्यक्षपनेका प्रसंग आवेगा, तथा जैसे यौवनपनेसे मनुष्य है उसही प्रकार

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