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[८३] प्रथमभंगमें चार पद हैं १ स्यात् २ अस्ति, ३ एव, ४ जीवः इनमें जीव पद द्रव्यवाचक है और अस्तिपद गुणवाचक है अर्थात्, ." जीवः अस्ति" का अर्थ जीवद्रव्य अस्तित्व गुणवान् है, इनमें ‘जीव विशेष्य है और अस्तित्व विशेषण है, अर्थात् जीव अस्तित्ववान् . है ऐसा अर्थ हुआ। प्रत्येक वाक्य कुछ न कुछ अवधारण (नियम).
अवश्य करता है । यदि नियम रहित वाक्य माना जाय तो वाक्यके प्रयोगको अनर्थकता आवेगी । उक्तंच "वाक्येऽवधारणं तावदनिष्टार्थनिवृत्तये । कर्तव्यमन्यथानुक्तसमत्वात्तस्य कुत्रचित् ॥” अर्थात् अनिष्टकी निवृत्तिकेवास्ते वाक्यमें अवधारण अवश्य करना चाहिये अन्यथा वाक्य, कदाचित् अनुक्तके समानही होगा, इसलिये जीवः अस्ति (जीव अस्तित्ववान है) इस वाक्यमेंभी अवधारण अवश्य होना चाहिये अर्थात् अवधारण (नियम ) वाचक एव (ही) शब्दका प्रयोग जीव पदके साथ करना चाहिये । जीवः अस्ति ये दो पद हैं इनमेंसे, एव शब्दका प्रयोग जीव पदके साथ करना अथवा अस्ति पदके साथ, जो जीव पदके साथ एवका प्रयोग किया जायगा तो वाक्यका आकार इसप्रकार होगा “ जीव एव अस्ति" अर्थात् जीवही अस्तित्ववान् है और ऐसी अवस्थामें जीवसे भिन्न पुद्गला'दिकके नास्तित्व (अस्तित्वके अभाव ) का प्रसंग आया, इसलिये जीवके साथ एवकारका सम्बन्ध इष्ट नहीं है, इस कारण अस्तिपदके साथ एवका प्रयोग करना चाहिये । ऐसा करनेसे वाक्यका आकार इस प्रकार होगा " जीवः अस्ति एव" अर्थात् जीव अस्तित्ववान्ही है, ऐसा होनेसे जीवमें केवल एक अस्तित्व धर्म (गुण) ही है अन्यधर्म नहीं हैं, ऐसा अनिष्ट अर्थ होने लगेगा, क्योंकि पहले जीवको अनेक धर्मात्मक (अनेकान्तात्मक) सिद्ध कर चुके हैं