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समस्त अनेक धर्मोंकी प्रतिपादकता संभव है, इसलिये जीवका निरूपण युगपत्पनेसे कहा जाता है । जब युगपत्पनेसे निरूपण होता है तत्र सकलादेश होता है, उसहीको प्रमाण कहते हैं, क्योंकि " सकलादेश प्रमाणके आधीन है " ऐसा वचन है । और जब क्रमसे निरूपण होता है, तब विकलादेश होता है उसहीको नय कहते हैं क्योंकि, " विकलादेश नयके आधीन है " ऐसा वचन है । (शंका) सकलादेश किसप्रकार है ( समाधान ) एक गुणकेद्वारा वस्तुके समस्त स्वरूपोंका संग्रह होनेसे सकलादेश है । भावार्थ- अनेक गुणोंका जो समुदाय है उसको द्रव्य कहते हैं, गुणोंसे भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ नहीं है इसलिये उसका निरूपण गुणवाचक शब्दकेविना नहीं हो सक्ता, अतः अस्तित्वादि अनेक गुणोंके समुदायरूप एक जीवका, निरंशरूप समस्तपनेसे, अभेदवृत्ति तथा अभेदोपचार करि, एक गुणकेद्वारा प्रतिपादन होता है और विभाग के कारण दूसरे प्रतियोगी गुणोंकी अपेक्षा नहीं है, इसलिये जिस समय एक गुणके द्वारा अभिन्नखरूप एक वस्तुका प्रतिपादन किया जाता है उससमय सकलादेश होता है । (शंका) अभेदवृत्ति अथवा अभेदोपचार किसप्रकार है ( समाधान ) द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे वे सम्पूर्ण धर्म अभिन्न हैं इसलिये अभेदवृत्ति है, तथा यद्यपि पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षासे वे समस्त धर्म परस्पर भिन्नभी हैं तथापि एकताके अध्यारोपसे अभेदोपचार है । इसका खुलासा इस प्रकार है कि, पूर्वाचार्योंने तत्वाधिगमका हेतु दो प्रकार वर्णन किया है १ स्वाधिगमहेतु २ पराधिगमहेतु, स्वाधिगमहेतु ज्ञानस्वरूप है, उसके भी दो भेद हैं १ प्रमाण २ नय, पराधिगमहेतु वचनस्वरूप है वह वचनस्वरूप वाक्य दो प्रकारका है १ प्रमाणात्मक २ नया६ जे. सि. द.