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[ ९१] पदार्थोसे निरपेक्ष, अत्यन्त शून्य पदार्थका प्रतिपादक और दूसरेके. अन्वयके अवलंबनसे रहित है; तथा भाव अभावसे निरपेक्ष, समस्त सद्रूपवस्तुका प्रतिपादक और व्यतिरेकके अवलम्बनसे रहित है; इसलिये कोईभी वस्तु सर्वथा अभावस्वरूप नहीं होसक्ती, क्या कभी किसीने किसी वस्तुको सर्वथा भावस्वरूप अथवा अभावस्वरूप देखा है ? कदापि नहीं! यदि वस्तु सर्वथा भावस्वरूप अथवा सर्वथा. अभावस्वरूप होय तो वस्तु वस्तुही नहीं ठहरेगी क्योंकि सर्वथा. अभावस्वरूप माननेसे आकाशके पुप्प समानशून्यताका प्रसंग आवेगा और जो सर्वथा भावस्वरूप वस्तुको माना जाय तो वस्तुका प्रति-. पादन ही नहीं होसक्ता, क्योंकि जब सर्वथा भावस्वरूप है तो जैसे भावके सद्भावकी अपेक्षासे है उसही प्रकार अभावके सद्भावकी अपेक्षासेभी होनेपर भावापेक्षित वस्तुत्वकी तरह अभावापेक्षित अवस्तुत्वकाभी प्रसंग आया और ऐसी अवस्थामें वही वस्तु और वही अवस्तु होनेसे वस्तुका प्रतिपादन ही नहीं होसक्ता, क्योंकि अभाव भावसे विलक्षण है इसलिये क्रिया और गुणके व्यपदेशसे रहित है
और भाव अभावसे विलक्षण है इसलिये क्रिया और गुणके व्यपदेश-. सहित है, और भाव और अभावकी परस्पर अपेक्षासे अभाव अपने सद्भाव और भावके अभावकी अपेक्षा रखता हुआ सिद्ध होता है और इसही प्रकार भावभी अपने सद्भाव और अभावके अभावकी अपेक्षा रखता हुआ सिद्ध होता है. यदि अभाव एकान्तसे है ऐसा मानोगे तो सर्वथा अस्तिस्वरूप माननेसे अभावमें भाव अभाव दोनोंके सद्भावका प्रसंग आया और ऐसी अवस्थामें भाव और अभावका संकर होनेसे अस्थितस्वरूपपनेसे दोनोंके अभावका प्रसंग आया. और यदि अभाव एकान्तसे नहीं है ऐसा मानोगे तो जैसे अभावमें.