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५ सामान्यरूप द्रव्यत्वकी अपेक्षासे आत्मा अस्तिस्वरूप है १, 'विशिष्टसामान्यरूप प्रतियोगी अनात्मत्वकी अपेक्षासे नास्तिस्वरूप है २, युगपत् उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्य है ३, और क्रमसे • उभयकी अपेक्षासे उभयस्वरूप है ४ ।
६ वस्तुकी यथासंभव विवक्षाको आश्रय करके द्रव्यसामान्यकी अपेक्षासे आत्मा अस्तिस्वरूप है १, तत्प्रतियोगी गुणसामान्यकी अपेक्षासे नास्तिस्वरूप है २, युगपत् उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्य• स्वरूप है ३, और क्रमसे उभयकी अपेक्षासे उभयस्त्ररूप है ४ ।
७ त्रिकालगोचर अनेक शक्तिस्वरूप ज्ञानादिक धर्मसमुदायकी अपेक्षासे आत्मा अस्तिस्वरूप है १, तद्वयतिरेक ( अनेक धर्म• समुदायके विपक्ष ) की अपेक्षासे नास्तिस्वरूप है २, युगपत् - उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्यस्वरूप है ३, और क्रमसे उभयकी अपेक्षासे उभयस्वरूप है ४ |
८ धर्मसामान्य सम्बन्धकी विवक्षासे किसी भी धर्म ( गुण ) का आश्रय होनेसे आत्मा अस्तिस्वरूप है १, तदभाव ( किसीभी धर्मका आश्रय न होने ) की अपेक्षासे नास्तिस्वरूप है २, युगपत् उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्य है ३, और क्रमसे उभयकी अपेक्षासे - उभयस्त्ररूप है ४ ।
९ अस्तित्य, नित्यत्व, निरवयवत्त्र आदि किसी एक धर्मविशे'पसंबंधी अपेक्षासे आत्मा अस्तिस्त्ररूप है १, तदभाव ( उसके प्रतिपक्षी किसी एक धर्म विशेषसंबंध ) की अपेक्षासे नास्तिस्वरूप है २, युगपत् उभयकी अपेक्षासे अवक्तव्य है ३, और क्रमसे • उभयकी अपेक्षासे उभयस्वरूप है ४ । अब आगे पांचवें भंगका स्वरूप लिखते हैं ।