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त्मक जिस वाक्यसे एक गुणद्वारा अभिन्नरूप समस्त वस्तुका निरूपण किया जाता है उस वाक्यको प्रमाणवाक्य कहते हैं इसहीका नाम सकलादेश है, और जो वाक्य अभेदवृत्ति और अभेदोपचारका आश्रय न करके वस्तुके किसी एक धर्म विशेषका बोधजनक है, उस वाक्यको नयवाक्य कहते हैं, इसहीका नाम विकलादेश है । इन दोनोंमेंसे प्रत्येकके सात सात भेद हैं. अर्थात् प्रमाणवाक्यके सात भेद हैं इसहीको प्रमाणसप्तभंगी कहते हैं । इसही प्रकार नयवाक्य केभी सात भंग हैं और इसहीका नाम नयसप्तभंगी है । { सप्तभंग अर्थात् वाक्योंके समूहको सप्तभंगी कहते हैं ). सप्तभंगीका लक्षण पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार किया है " प्रश्नवशादेकस्मिन्वस्तुन्यविरोधेनविधिप्रतिषेधत्रिकल्पना सप्तभंगी " अर्थात् प्रश्नके वशसे किसी एक वस्तुमें अविरोध रूपसे विधि तथा प्रतिपेवकी कल्पनाको सप्तभंगी कहते हैं जैसे १ स्यादस्त्येवजीवः २ स्यान्नास्त्येवजीवः ३ स्यादवक्तव्यएवजीवः ४ स्यादस्तिनास्तिचजीव: ५ स्वादस्तिचावक्तव्यश्चजीवः ६ स्यान्नास्तिचावक्तव्यश्वजीवः ७ स्यादस्तिनास्तिचावतव्यवजीवः अव पहलेही सकलादेशका कथन करते हैं.
सकलादेशमें प्रत्येक पदार्थके प्रति सात सात भंग जानने अर्थात् १ कचंचित् जीव हैही २ कथंचित् जीव नहींही है ३ कथंचित् जीव अवक्तव्यही है ४ कथंचित् जीत्र है और नहीं है . ५ कथंचित् है और अवक्तव्य है ६ कथंचित् नहीं है और अवक्तव्य है ७.
कथंचित् जीव है, नहीं है और अवक्तव्य है. पदार्थोंपर लगा लेना. इन सात भंगोंमेंसे पहले इस प्रथमभंगका अर्थ लिखते हैं.
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इसही प्रकार समस्त
" त्यादस्त्येवजीव: "