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[७८] ओंको धारण करनेवाले क्रोधादिक अनेक भावरूप परिणमन होनेसे अनेकान्तात्मक है।
(९) अथवा भूत, भविष्यत् , वर्तमान, कालके अनन्त समय हैं। एकजीव प्रत्येक समयमें भिन्न २ अवस्थारूप परिणमै है; इसलिये अनन्तसमयोंमें अनन्तपरिणामरूप होनेसे अनेकान्तात्मक है।
(१०) अथवा उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप होनेसे एकजीव अनेकान्तात्मक है । भावार्थ:-यद्यपि एक पदार्थ एकही समयमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यस्वरूप है; तो अनन्त समयोंमें एकही पदार्थके अनन्त उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वयंसिद्ध हैं; तथापि एकही पदार्थके एक समयमें एकही उत्पाद अनेक स्वरूप है। उसका खुलासा इस प्रकार है। जैसे एक घट एक समयमें पार्थिवपनेसे उत्पन्न होता है; जलपनेसे उत्पन्न नहीं होता है । निजाधारभूतक्षेत्रकपनेसे उत्पन्न होता है; अन्यक्षेत्रकपनेसे उत्पन्न नहीं होता है। वर्तमानकालपनेसे उत्पन्न होता है; नकि अतीतानागतकालपनेसे । बड़ेपनसे उत्पन्न होता है; नकि छोटेपनसे । जिससमय यह घट अपने द्रव्य, क्षेत्र, कालभावसे उत्पन्न होता है उसही समयमें इसके सजातीय अन्य पार्थिव घट, अथवा ईषद्विजातीय ( किंचित् विजातीय ) सुवर्णादि घट, तथा अत्यन्त विजातीय पट आदि अनन्त मूर्त्तामूर्त द्रव्य, अपने २ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे उत्पन्न होते हैं। प्रकृत घटका उत्पाद, इन अनन्त पदार्थोके अनन्त उत्पादोंसे मेदरूप होनेसे स्वयं अनन्त भेदरूप है । अन्यथा सत्र पदार्थोंमें अविशिष्टताका प्रसंग आवैगा तथा तीन लोकमें 'अनन्त पदार्थ हैं; वे अनन्त पदार्थ वर्तमानसमयको छोड़ अतीत और अनागतकालके अनन्त समयोंमें, अनन्त अवस्थास्वरूप हैं; उन अनन्त अवस्थारूप पदार्थों के सम्बन्धसे; वर्तमानकाल सम्बन्धी प्रकृत घटकां