Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 52
________________ [४०] नहीं है, परन्तु समस्त गुणोंके पिण्डको देश कहते हैं और प्रत्येक गुण समस्त देशमें होता हैं, इस कारण देशके एक अंशमें समस्त गुणोंका सद्भाव है. ऐसी अवस्था में उसको. एक गुणकी पर्याय नहीं कह सकते; अर्थात् उस देशांशमें समस्त गुण हैं और समस्त गुणोंके समुदायको द्रव्य कहते हैं; इसलिये देशांशको द्रव्यपर्याय कहनाही समुचित होता है. गुणांशकल्पनाको गुणपर्याय कहते हैं. गुणपर्यायके दो भेद हैं-एक अर्थगुणपर्याय, दूसरा व्यंजनगुणपर्याय । १ ज्ञानादिकं भाववती . शक्तिके विकारको. अर्थगुणपर्याय कहते हैं। २ प्रदेशवत्वगुणरूपक्रियावतीशक्तिके विकारको व्यंजनगुणपर्याय कहते हैं. इसही व्यंजनगुणपर्यायको द्रव्यपर्यायभी कहते हैं, क्योंकि व्यंजनगुणपर्याय द्रव्यके आकारको कहते हैं । सो यद्यपि यह आकार प्रदेशवत्वशक्तिका विकार है, इसलिये इसका मुख्यतासे प्रदेशवत्वगुणसे संबंध होनेके कारण इसे व्यंजनगुणपर्यायही कहना उचित है. तथापि गौणतासे इसका देशकेसाथभी. संबंध है; इसलिये देशांशको द्रव्यपर्यायकी उक्ति की तरह इसकोभी द्रव्यपर्याय कहसक्ते हैं । अब आगे जहां द्रव्यपर्याय अथवा. व्यंजनपर्याय शब्द आवै, तो इन शब्दोंसे. व्यंजनगुणपर्याय समझना; और गुणपर्याय अथवा अर्थपर्याय शब्दोंसे अर्थगुणपर्याय समझना.. इन दोनोंके स्वभाव...और विभावकी अपेक्षासे दो दो भेद हैं, अर्थात् १ स्वभावव्यपर्याय, २ विभावव्यपर्याय, ३ स्वभावगुणपर्याय, ४. विभावगुणपर्याय ।. . . . . . . ... · · जो निमित्तांतरके बिना होवे उसे स्वभाव कहते हैं. और जो दूसरेके निमित्तसे होय: उसको विभाव कहते हैं.. जैसे कर्मरहित

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