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[४९] हैं। जैसे वृक्ष एका पदार्थ है और फलपुप्पादि उसके अंश हैं इसप्रकार उत्पादादिक सत्कं अंश नहीं है, किन्तु स्वयं सत् ही प्रत्येक अंशस्त्ररूप है । यदि सत् (द्रव्य ) उत्पादलक्ष्य है अथवा उत्पादस्वरूप परिणम है तो वस्तु केवल उत्पाद मात्र है, यदि वस्तु व्ययलक्ष्य है अथवा व्ययनियत है तो वस्तु केवल व्ययमान है, यदि यस्तु ध्रौव्यलक्ष्य है अथवा ध्रौव्यस्यन्न परिणत है तो बलु धौन्य मात्र है। जैसे मृत्तिका । यदि सस्वरूपघटलत्य है तो मृत्तिका केवल घटमात्रहीं है, यदि असत् त्वम्प पिण्डलक्ष्य है तो मृत्तिका केवल पिण्डमात्र है और यदि मृत्तिका केवल मृत्तिकापनकर लक्ष्य है तो मृत्तिका केवल मृत्तिकात्व मात्र है । इसप्रकार सनक उत्पादादिक तीन अंश हैं। ऐसा नहीं है कि, वृक्ष फलपुष्पकी तरह किसी एक भागत्वरूप अंशस सत्का उत्पाद है तथा किसी एक एक भागवरूप अंश व्यय और ध्रौव्य है । अब यहां फिर कोई शंका करे कि, ये उत्पाद व्यय ध्रौव्य अंशोंके हैं कि अंशीक, अथवा सत्के अंशमात्र हैं अथवा असत् अंश भिन्न हैं। इसका समाधान इसप्रकार है कि, यदि इनपक्षोंको सर्वथा एकान्तखम्प मानाजाय तो सब विरुद्ध हैं और इनहीको जो अनेकान्तपूर्वक किती अपेक्षा विशेषसे माना जाय तो सर्व अविरुद्ध है। केवल अंशका अथवा केवल अंशीका न उत्पाद है न व्यय है और न ग्रीव्य है। किन्तु अंशीका अंश करके उत्पाद व्यय ध्रौव्य होता है। अब यहां फिर कोई शंका करता है कि, एकही पदार्थके उत्पाद व्यय और ध्रौव्यं ये तीन धर्म कहते हो सो प्रत्यक्षविरुद्ध है । इसमें कोई युक्ति भी है अथवा वचनमात्रसे ही सिद्ध है। उसका समाधान इसप्रकार है कि, यदि उत्पाद व्यय ग्रीव्य इन तीनोंमें क्षणभेद होता अथवा स्वयं सतही उपजता और खयं सतही विनसता, तो यह विरोध आता
जे.ति. द.