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दूसरा है सो दूसराही है वह नहीं है; इसको भावव्यतिरेक कहते हैं । यहः इस प्रकारका व्यतिरेकपर्यायोंमेंही होता है। गुण यद्यपि अनेक हैं. तथापि इस प्रकारके व्यतिरेक गुणोंमें नहीं हैं । किसीने जीवको "ज्ञानहै सा जीव है " इस प्रकार ज्ञानगुणकी मुख्यतासे ग्रहण किया, और दूसरेने" " दर्शन है सो जीव है ?" इस प्रकार दर्शनगुणकी मुख्यतासे जीवको ग्रहण किया; किंतु दोनोंने उसे ही जीवको उतनाहीं ग्रहण किया । इसलिये जैसे अनेक पर्याय " सो ग्रह नहीं है " इस लक्षणके सद्भावसे व्यतिरेकी हैं उस प्रकार गुण अनेक होनेपर भी. " सो यह नहीं है " इस लक्षणके अभावसे व्यतिरेकी रहीं है । उनगुणोंके दो भेद हैं सामान्य और विशेष; जो गुण दूसरे द्रव्योंमें, पाये जाते हैं उनको सामान्यगुण कहते हैं, जैसे सत् इत्यादि और जो गुण दूसरे द्रव्योंमें नहीं पाये जाते उनको विशेषगुण कहते हैं,जैसे ज्ञानादिक । इस प्रकार गुणका कथन समाप्त हुआ अब आगे. पर्यायका कथन करते हैं ।
पर्याय व्यतिरेकी, क्रमवर्ती, अनित्य, उत्पादव्ययखरूप, तथा. कथंचित् ध्रौव्यखरूप होती है; सो व्यतिरेकीपनेका लक्षण तो गुणके । कथनमें कर आये, अत्र शेषमेंसे पहलेही क्रमवर्तित्वका लक्षण कहते हैं । पहले एक पर्याय हुई उस पर्यायका नाश होकर दूसरी हुई, दूसरीका नाश होकर तीसरी हुई; इसही प्रकार जो क्रमसे होय
उसको क्रमवर्ती कहते हैं । ( शंका ) तो फिर व्यतिरेक और क्रममें क्या भेद हैं ? (समाधान) जैसे स्थूल और सूक्ष्म दो प्रकारकी पर्याय
हैं और स्थूलपर्यायमें सूक्ष्मपर्याय अंतलीन हैं (गर्भित हैं ); इन
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दोनोंमें. यद्यपि पर्यायपनेकर समानता है तथापि स्थूलसूक्ष्म अपेक्षा भेदः है । भावार्थ:- द्रव्यका आकार प्रतिसमय परिणमनरूप होता है । प्रथमः