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[७४] वस्तुका स्वरूप मान रक्खा है इस कारण सर्वत्र विरोधही विरोध दीखता है । यदि इन धर्मोंको कथंचित् रूपसे मानें तो कुछभी विरोध नहीं रहै; जैसे कि, छह जन्मांध पुरुषोंने हस्तीके भिन्न २ अंगोंको देखकर हस्तीका भिन्न २ स्वरूपसे निश्चय किया और अपने २ पक्ष सिद्ध करनेके लिये विवाद करने लगे । अर्थात् एक अंधेने हस्तीका सूंड छुई थी इस कारण वह हस्तीका स्वरूप मूसलाकार निरूपण करता था, दूसरेने हस्तीका कान पकड़ा था इस कारण वह हस्तीका स्वरूप सूपके आकार निरूपण करता था, तीसरेने हस्तीकी पूंछ पकड़ी थी इस कारण वह हस्तीका · स्वरूप दण्डाकार' निरूपण करता था, चौथेने हस्तीकी टांग पकड़ी थी इस कारण वह हस्तीका स्वरूप स्तम्भाकार निरूपण करता था, पांचवेने पेट छुआ था इस कारण वह हस्तीका स्वरूप विटौरेके आकार कहता था और . छठेने दांत पकड़ा था इस कारण वह हस्तीका स्वरूप सोटेके आकार निरूपण करता था। इस प्रकार वे छहों जन्मान्ध; हस्तीके भिन्न २ अंगोंका स्पर्शकर भिन्न २ अंगस्वरूप हस्तीका निरूपणं करके आपसमें झगड़ते थे । दैवयोगसे इतनेहीमें एक सूझता ( आंखेंसहित) मनुष्य आगया और उनको इस प्रकार झगड़ते हुए देखकर कहने लगा, भाइयो! "तुम व्यर्थ क्यों झगड़ा कर रहे हो, तुम सब सच्चे हो । तुमने हस्तीका एक एक अंग देखा है। इनही सव अंगोंका जो समुदाय है वही वास्तविक हस्ती है" । ठीक ऐसीही अवस्था । संसारके मतोंकी है । अनेकान्तात्मक वस्तुके एक एक अंगकोही वस्तुका यथार्थ स्वरूप मानकर अनेक वादी प्रतिवादी परस्पर विवाद कर रहे हैं । यदि ये महाशय एकान्तआग्रहको छोड़कर अनेकान्ता-- त्मक वस्तुका स्वरूप मानलें तो परस्पर कुछभी विवाद नहीं रहै ।.