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. [६७] अनेक गुण साथ रहते हैं। कभी भी उनका परस्पर वियोग नहीं होता; किंतु पर्याय क्रमभावी हैं इसलिये उनका सदा साथ नहीं रहता । जे पर्याय पूर्वसमयमें हैं वे उत्तरसमयमें नहीं हैं। किंतु गुण जितने पूर्वसमयमें साथ थे वे सत्रही उत्तरसमयमें हैं । इसलिये गुणोंका साथ कभी नहीं छूटता। यह बात पर्यायोंमें नहीं है । इसलिये गुण सहभावी हैं और पर्याय क्रमभावी हैं । जो अनर्गल प्रवाहरूपवर्ते उसको अन्वय कहते हैं । सत्ता, सत्व, सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये सब शब्द एकार्थवाचक है । वह अन्वय जिनका होय उनको अन्वयी अथवा गुण कहते हैं । भावार्थ:-एक गुणका उसही गुणकी अनंत अवस्थाओंमें अन्वय (सन्तति अथवा अनुवृत्ति) पाया जाता है । इसकारण गुणको अन्वयी कहते हैं । यद्यपि एक द्रव्यमें अनेक गुण है । इसलिये नानागुणकी अपेक्षा गुण व्यतिरेकीभी है । परंतु एक गुण अपनी अनंत अवस्थाओंकी अपेक्षासे अन्वयीही है । यह वही है, इस ज्ञानके हेतुको अन्वय कहते हैं, और यह वह नहीं है, इस ज्ञानके हेतुको व्यतिरेक कहते हैं । वह व्यतिरेक देश, क्षत्र, काल और भारके निमित्तसे चार प्रकारका है । अनंतगुणोंके एक समयवर्ती अभिन्न पिंडको देश कहते हैं । जो एक देश है सो दूसरा नहीं है; तथा जो दूसरा देश है सो दूसराही है, पहला नहीं है; इसको देशव्यतिरेक कहते हैं । जितने क्षेत्रको व्यापकर एक देश रहता है वह क्षेत्र वही है, दूसरा नहीं हैऔर दूसरा है सो दूसराही है यह नहीं है। इसको क्षेत्रव्यतिरेक कहते हैं । एक समयमें जो अवस्था होती है सो वह अवस्था वही है दूसरी नहीं है और द्वितीय समयवर्ती अवस्था दूसरीही है वह नहीं है। इसको कालन्यतिरेक: कहते हैं । जो एक गुणांश है वह वही है दूसरा नहीं है और जो