Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ [ २] यद्यपि इन तीनों लक्षणोंमें परस्पर विरोध नहीं है और परस्पर एक दूसरेके अभिव्यंजक हैं, तथापि ये तीनों लक्षण द्रव्यकी भिन्न तीन शक्तियोंकी अपेक्षासे कहे हैं अर्थात् पहले द्रव्यके छह सामान्यगुण कह आए हैं, उनमें एक द्रव्यत्व, दूसरा सत्त्र, और तीसरा अगुरुलघुत्व है ( इन तीनोंके लक्षण भूमिकासे जानने ). सो पहला लक्षण द्रव्यत्वगुणकी मुख्यतासे, दूसरा लक्षण सत्वगुणकी मुख्यतासे, और नीसरा लक्षण अगुरुलघुत्वगुणकी मुख्यतासे कहा है अब आगे गुणका - स्वरूप वर्णन करते हैं। गुणका लक्षण पूर्वाचार्योंने इसप्रकार किया है कि, द्रव्यके आश्रय विशेषमात्र निर्विशेषको गुण कहते हैं । भावार्थ-एक गुण जितने क्षेत्रको व्यापकर रहता है उतनेही क्षेत्रमें समस्तगुण रहते हैं, अर्थात् अनन्तगुण एकही देशमें भिन्न २ लक्षणयुक्त अभिन्न भावसे - रहते हैं । इनगुणोंके अभिन्नभावकोही द्रव्य कहते हैं। वही द्रव्य इन गुणोंका आश्रय है। जैसे अनेक तन्तुओंके समूहकोही पट कहते हैं। इस पटकेही आश्रय अनेक तंतु हैं परन्तु प्रत्येक तंतुका.जैसे देश भिन्न २ है उसप्रकार प्रत्येक गुणका देश भिन्न २. नहीं हैं किन्तु सबका देश एकही है। जैसे किसी वैद्यने एक एक तोले प्रमाण एक लक्ष ओषधि लेकर एक चूर्ण बनाया और उसकी कूट छान नींबूके समें घोंटकर एक एक रत्तीप्रमाण गोलियां बनाई अब उस एक गोलीमें एक लक्ष औषधियां हैं और उन सबका देश एकही है इसही प्रकार समस्त गुणोंका एक देश जानना । परंतु दृष्टान्तका दार्टान्तसे एक देशही मिलता है:। जिसधर्मकी अपेक्षासे दृष्टान्त दिया है उसही अपेक्षासे समानता समझना. अन्यधर्मोकी अपेक्षा समानता नहीं सम-. :झना । गुणके नित्यानित्य विचारमें अनेक वादी प्रतिवादी. नाना

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169