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[२८] ये द्रव्यार्थिक नयके दर्श भेद हो चुके । अब पर्यायार्थिक नयके . छह भेदोंके लक्षण और उदाहरण सुनिये:-- : .... . .
१ जो अनादिनिधन चन्द्रसूर्यादि पर्यायोंको ग्रहण करता है, उसको अनादि-नित्य पर्यायाथिक नये कहते हैं । जैसे,-मेरु, . पुद्गलंकी नित्यः पर्याय है।
२ कर्मक्षयसे उत्पन्न और कारणभावसे अविनाशी पर्यायको जो ग्रहण करता है, उसको आदि-नित्य-पर्यायार्थिक नय कहते हैं। . नैसे, जीवंकी सिंद्धपर्याय नित्य है। . : .. .
३ जो सत्ताको गौण करके उत्पादेव्ययं स्वभावको ग्रहण करता है, उसे अनित्य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय कहते हैं । जैसे, पर्याय 'अंतिसमय विनश्वर है। - ४ जो पर्यायको एक समयमें उत्पादव्यय और ध्रौव्य स्वभावयुक्त ग्रहण करता है, उसको अनित्यअशुद्धपर्यायाथिक नय कहते हैं । जैसें पर्यायं एक समयमें उत्पाद-व्यय ध्रौव्य स्वरूप है।
५ जो संसारी जीवोंकी पर्यायको सिद्धसंदेश शुद्धं पर्याय ग्रहण. . करता है, उसको कर्मोपाधि निरपेक्षअनित्यशुद्धपर्यायार्थिक • नये कहते हैं । जैसे,-संसारी जीवको पर्याय सिद्धसदृश शुद्ध है। .. ६ जो संसारी जीवोंकी चतुर्गति सम्बन्धी अनित्यं अशुद्ध पर्यायको ग्रहण करता है, उसको कोपांधिसापेक्षअनित्य अंशुद्धपर्यायार्थिक नय कहते हैं । जैसे, संसारी जीव उत्पन्न होते हैं,
और विनाशमान होते हैं। : ...:. : .. . . . .. ये पर्यायार्थिक नयके छह भेद हुए। अब नैगमनयके तीनों भेदोंके लक्षण इस प्रकार है:-- ... ..........: