Book Title: Jain Siddhant Darpan
Author(s): Gopaldas Baraiya
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 40
________________ [२६] और शास्त्रीयपर्यायाथिक । इनमेंसे अध्यात्मद्रव्यार्थिंकके दश भेद, और अध्यात्मपर्यायार्थिकके छह भेद हैं । शास्त्रीयद्रव्यार्थिंकके तीन भेदः... १ नैगम, २ संग्रह, और ३ व्यवहार हैं । जिनमें भी नैगमके तीन भेद, संग्रहके दो भेद, व्यवहारके दो भेद, इस प्रकार शास्त्रीय- .. द्रव्यार्थिकके सब सात भेद हुए । शास्त्रीयपर्यायार्थिकके चार भेद हैं। १ ऋजुसूत्र, २ शब्द, ३ समभिरुढ, और एवंभूत । इनमें भी . . ऋजुसूत्र नयके दो भेद और शेष तीनोंके एक एक. । सब मिलकर शास्त्रीयपर्यायार्थिकके पांच भेद हुए। इस प्रकार शास्त्रीयनयके बारह भेद और अध्यात्मके सोलह भेद सब मिलकर निश्चयनयके कुल अहाईस भेद हुए। व्यवहारनयके मूलभेद तीन १ सद्भूत, २ असद्भुत और ३ उपचरित । इसमें भी सद्भूतके दो, असद्भूतके तीन और उपचरितके तीन भेद, इस प्रकार व्यवहारनयके सत्र. मिलकर आठ . भेद हुए । इसमें निश्चयनयके अट्ठाईस भेद मिलानेसे नयके कुल ३६ .. . भेद हुए । अब इनके भिन्न भिन्न लक्षण इस प्रकार जानने चाहिये। सबसे पहले अध्यात्मद्रव्यार्थिंकके दश भेदोंके लक्षण कहते हैं: १ जो कर्मवन्धसंयुक्त संसारी जीवको सिद्धसदृश शुद्ध ग्रहण . करता है, उसको कर्मोपाधिनिरपेक्ष-शुद्ध-द्रव्याथिकनय कहते . हैं । जैसे, संसारी जीव सिद्धसदृश शुद्ध हैं। . . ..: २ जो उत्पादव्ययको गौण करके केवल सत्ताका ग्रहण करता है, . उसको सत्ताग्राहक:शुद्ध-द्रव्यार्थिक कहते हैं। जैसे, द्रव्य नित्य है। । ३ गुणगुणी और पर्यायपर्यायामें भेद न करके जो द्रव्यको गुणपर्यायसे अभिन्न ग्रहण करता है उसको भेद विकल्प निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक कहते हैं जैसे-अपने गुणपयायसे द्रव्य अभिन्न है।

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