________________
[ ३३ ]
प्रतिवित्रको चन्द्रमाँ कहना यहां सजांति पर्यायमें संजाति पर्यायकां समारोप है. मतिज्ञानको मूर्त्तक कहना यहां विजाति गुणमें विजाति गुणका समारोप है. जीवाजीवस्वरूप ज्ञेयको ज्ञानका विषय होनेसे ज्ञान कहना सजातिविजातिद्रव्यमें सजातिविजातिगुणका समारोप है. परमाणुको बहुप्रदेशी कहना यहां सनातिद्रव्यमें सजातिविभावर्याया समारोप है. इसी प्रकार अन्य उदाहरण समझने चाहिये. अगर कोई यहां शंका करे कि, यह असंभूतव्यवहार मिथ्या है, सो यह शंका निर्मूल है. जगत्का व्यवहार इस नयके विना कदापि नहीं चल सकता और यह बात अनुभवसिद्ध है. किसी पुरुषने अपने लड़केसे कहा कि, घीका घड़ा लाओ तो यह सुनतेही वह लड़का तुरन्त घीसे भरा हुआ मिट्टीका अथवा तांबे, पीतलका घड़ा उठा लाता है. यदि यह नय मिथ्या होती. तो उस लड़केको उपर्युक्त अर्थज्ञान किस प्रकार हुआ ?
- अंव उपचरितव्यवहारनयका लक्षणं कहते हैं । इसको उपचरितास भूतव्यवहारनयभी कहते हैं । उवयारा उवयारं सच्चा सच्चे सु उहय अत्थेसु ॥ सज्जाइ इयर मिस्से उवयंरिओ कुणइ ववहारी ॥ १ ॥ -
· अथवा मुख्याभावे सति प्रयोजने निमित्ते चोपचारः प्रवर्तते सोपि संवन्धाविनाभावः अर्थात् सत्य, असत्य, उभयरूप, सजातिविजाति “मिश्र पदार्थोंमें उपचारोपचार करै सो उपचरितासभूत व्यवहारनय है । भावार्थ - मुख्य पदार्थका अनुभव होते हुए प्रयोजन और निमित्तके. वशतें इस नयकी प्रवृत्ति होती है। प्रयोजनका अभिप्राय व्यवहरिसिद्धि और निमित्तका अभिप्राय विषयंविषयी, परिणामपरिणामी, कार्यकारण आदि संवन्ध है । ३ जे. सि. द.
+