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[२०] उसको विरुद्ध हेवाभास कहते हैं; जैसे " शब्द नित्य है क्योंकि . परिणामी है; " यहाँपर " परिणामित्व " हेतुकी व्याप्ति साध्य-नित्यत्वके साथ न होकर उससे विरुद्धः अनित्यत्वके साथ है क्योंकि जो जो परिणामी. होते हैं वे अनित्य होते हैं, नित्य नहीं; इसलिये यह हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है । जो हेतु पक्ष ( जहाँ, साध्यक्के रहनेका शक हो) सपक्ष: (जहां साध्यके सद्भावका निश्चय हो). विपक्ष ( जहाँ साध्यके अभावका. निश्चय हो ) इन तीनोंमें रहै उसको अनैकान्तिक (व्यभिचारी ) हेत्वाभास कहते हैं; जैसे. " इस- पर्वतमें. धूम. है क्योंकि यहाँ अग्नि है. ". यहाँपर " अग्निमत्व " हेतु, पक्षपर्वत, सपक्ष, रसोईघर, विपक्ष-अंगारा. इन तीनोंमें रहता है; इसलिये यह हेतु अनेकान्तिक (व्यभिचारी ) हेत्वाभास है, जो हेतु, साध्यकी सिद्धि करने समर्थ. न हो उसे: अकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहते हैं.. उसके दो भेद हैं-एकः सिद्धसाधन दूसरा बाधितविषयः । सिद्धसाधन उसे कहते हैं जिस हेतुका साध्य, साध्यकी सिद्धि करनेके पहले ही सिद्ध हो । जैसे. “. अग्निः गर्महै क्योंकि छूनेसे ऐसा ही (. गर्म-) मालूम होता है. ” यहाँ अग्निमें गर्माई सिद्ध करनेके लिए.. दिये गये. “ छूनेसे ऐसाही मालूम होता है." हेतुकाः साध्य-अग्निमें गर्माई पहलेहीसे सिद्ध है इसलिये अनुमान करनेसे- कुछ भी फायदा न हुआ । जिसः हेतुके साध्यमें दूसरे:प्रमाणसे. वाधा आवे उसे बाधितविषयः हेलाभासः कहते हैं । उसके प्रत्यक्षबाधित,, अनुमानवाधित, आग़मबाधित; स्ववचनवाधित आदि अनेक भेद हैं। प्रत्यक्षवाधित. उसे कहते हैं जिसके साध्यमें प्रत्यक्षस: बाधा आवे; जैसे, :. अग्नि ठंडी है क्योंकि यह द्रव्य है । यहाँ द्रव्यत्वः”. यह हेतु प्रत्यक्षा बाधित है, क्योंकि : अग्निः प्रत्यक्षसे: ठंडीकी बजाय गर्म मालूम होती।