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[११] ज्ञानके द्वारा जाने हुए पदार्थके विशेष अंशमें, ईहा ज्ञानकी प्रवृत्ति होती है और ईहा, अवाय, धारणा इन तीनों ज्ञानोंमें प्रवलता दुर्बलताकी अपेक्षा विशेपता है । ईहा ज्ञान इतना कमजोर है कि जिस पदार्थका ईहा होकर छूट जाय उसके विपयमें, कालान्तरमें संशय और विस्मरण हो जाता है और अवाय ज्ञानसे जाने हुए पदार्थमें संशय नहीं होता । इस लिये ईहा ज्ञानसे यह अवाय ज्ञान प्रबल है, परन्तु इसके विषयमें विस्मरण हो जाता है
और धारणा ज्ञानसे जाने हुए पदार्थमें, कालान्तरमें संशय तथा विस्मरण भी नहीं होता है । इस लिये यह ज्ञान अवाय ज्ञानसे भी प्रबल है, इसलिये विषयमें विशेषता तथा उत्तरोत्तर ज्ञानोंमें प्रबलता होनेकी वजहसे ये चारों ही ज्ञान प्रमाण हैं । और जिस ज्ञानमें, इंद्रिय और मनकी सहायता न होनेकी वजह तथा केवल आत्माकी अपेक्षा होनेकी वजह सर्व देशसे निर्मलता पाई जाय, उसे पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं । उसके दो भेद हैं विकल प्रत्यक्ष १ सकल प्रत्यक्ष २ । जो कुछ एक पदार्थोको सर्वांशकरके स्पष्ट रीतिसे जानता है, उसे विकल प्रत्यक्ष कहते हैं । इसके भी दो भेद हैं । अवधि ज्ञान १ मनःपर्यय ज्ञान २ । जो सम्पूर्ण पदार्थोको सर्वांशकरके स्पष्ट रीतिसे जानता है वह सकल प्रत्यक्ष है । इसका दूसरा कोई जुदा भेद नहीं है, इसहीको केवलज्ञान कहते हैं । परोक्ष प्रमाण उस ज्ञानको कहते हैं जो पदार्थके खरूपको अस्पष्ट रीतिसे जानता है । भावार्थ:ज्ञानावरणी कर्मके क्षयस, अथवा कोई एक विलक्षण क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली और शाब्द व. अनुमानादि ज्ञानसे जो नहीं जानी जा सकती है, ऐसी जो एक अनुभवसिद्ध निर्मलता है उस ही को स्पष्टता विशदता कहते हैं, यह निर्मलता जिस ज्ञानमें पाई जाय