Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

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Page 20
________________ जन-संस्कृति का राजमार्ग नियत्रण नही, विलासिता व परमुखापेक्षी भावना है, वहां पर न तो विकास ही सधेगा और न प्रचार ही होगा। इसलिए आप नवयुवक भावना से गुणोपासक बनकर अपनी वृत्तियो व प्रवृत्तियो मे सयम का प्रवेश कराएँ और उसके बाद निष्ठापूर्वक महान एव विशाल जैन दर्शन तथा सस्कृति का समुचित प्रचार करें । आपको अवश्य ही सफलता मिलेगी और आप उनकी विशालता का परिचय दूसरो को दे सकेगे। स्थानमहावीर भवन, चांदनी चौक, दिल्ली (जैन सोसायटी दिल्ली के विद्यार्थियो के समक्ष दिया मया व्यारयान )

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