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स्यावाद : सत्य का साक्षात्कार
जजीर की अपेक्षा से उत्पन्न हो गया, किन्तु स्वर्णत्व की अपेक्षा से वह पहले भी था और अब भी है, वह उसकी स्थिर स्थिति हुई। पदार्थ की पर्याय बदलती है। उसमे पूर्व पर्याय का विनाश व उत्तर पर्याय की उत्पत्ति होती रहने पर भी पदार्थ का द्रव्य स्वरूप उसमे कायम रहता है। इस तरह पर्यायाथिक नय (दशा परिवर्तन ) की अपेक्षा से पदार्थ अनित्य है और द्रव्यापिक नय (स्थिर स्थिति ) की अपेक्षा से नित्य भी है। यही स्याद्वाद का मार्मिक म्दरूप है।
स्याहाद का यह स्वरूप एक ओर जैसे सभी दार्शनिक विवादो को समाप्त कर देता है, उसी तरह दूसरी ओर जगत के समस्त वैचारिक सघर्षों का भी समन्वयात्मक समाधान प्रस्तुत करता है। आज जब कि भीषण ग्वतपात, वैर-विरोध, घृणा, हिंसा, वर्ग-विद्वेष, साम्प्रदायिकता व स्वार्थपरता के लम्बे युग के अत्याचारो से विश्व मे भयकर अगान्ति फैली हुई है, मनुप्यो के मस्तिष्को का शान्तिपूर्वक एकीकरण विश्व शान्ति का सबसे बड़ा योगदान साबित हो सकता है। दो दो विश्व-युद्धो के वीभत्स तांडवकारी दृश्य प्राज भी सबकी खिो के सामने घूम जाते है-वह भुखमरी, वह बर्बरता और सबसे बटा हिरोशिमा (जापान) पर फेंके गये उस अणुबम का विन्गशक पडाका । परन्तु प्रारचर्य कि भले ही ऊपर से शान्तिवार्ताएं चल रही हैं, युद्ध समाप्ति के नारे लगाये जा रहे हैं, किन्तु अणुवम से भी भयकर उद्जन वमो व नत्रजन बमो का उत्पादन किया जा रहा है और उस समय के महाविनापा की कल्पना तक नहीं की जा सकती, जब कभी दुर्भाग्य से ऐसे दाम्य. पाम गे लाये जाएंगे।
दूसरे अब जो घन्दर-ही-अन्दर प्रशान्ति की ज्वाला बढ़ती जा रही है, उसे एक तरह से दिमागो या विचारो के युद्ध का ही नाम दिया जा सकता है। यह युद्धो का नया तरीका है और सबसे अधिक खतरनाक तरीका भी। जद तया विचारो की लडाई समाप्त नहीं होगी, तब तक इस बात की शंका कतई नहीं मिट सकती कि दुनिया के पटल पर ने युद्धो का गौरव भी रात्म हो सकता है। विचारो की कहामका समाप्त होने पर ही मानद