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जैन-संस्कृति का राजमार्ग
एक नई रोशनी, नया प्रादर्श भी उपस्थित कर सकेंगे, क्योकि अपरिग्रह का सिद्धान्त साम्यवाद व समाजमाद के लक्ष्यो की तो पूर्ति कर देगा किन्तु उनकी बुराइयो को भी चरित्र एव सयम की प्राचारशिला पर नागरिको को खड़ा करके पनपने नही देगा।
इसलिए मे आपसे कहता हूं कि आप अपरिग्रही बनिये और महावीर के गौरवान्वित नाम के गौरव को और अधिक बढाइये । यह बाहर का वैभव बाहर और अन्दर दोनो को डुबाने वाला है प्रत. अन्दर के वैभव को बढाइये भौर उसको समृद्ध करिये। भगवान महावीर ने भी अपने पहले फैले हुए असत्य, हिंसा के प्रवाह, एकान्ती विचार एव परिग्रही ममत्त्व के अंधेरे को अपने ज्ञान के प्रालोक से विनष्ट किया, उसी रोशनी की मसाल को आप फिर से ऊपर उठाइये घोर आप देखेंगे कि आपकी उन्नति का निष्कटक पथ स्पष्ट दिखाई दे रहा है ।
लोदी रोड, दिल्ली
दि. १५-४-५१