Book Title: Jain Sanskruti ka Rajmarg
Author(s): Ganeshlal Acharya, Shantichand Mehta
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala Bikaner

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Page 112
________________ १०८ जैन-संस्कृति का राजमार्ग बार प्रात्मा के सिद्ध-बुद्ध होने पर उसका ससार से किसी भी रूप मे कोई सम्बन्ध नहीं रहता। और जैन दर्शन की इस मान्यता के मूल मे रही हुई है कर्मण्यता की भावना और समानता का सन्देश । हर प्रात्मा बराबर है अपनी शक्ति और अपने स्वरूप की दृष्टि से किन्तु उस शक्ति और स्वरूप की प्राप्ति होती है एक कठिन साधना के बाद । इसलिए यह मान्यता प्रेरणा जगाती है कि हर आत्मा अपने उत्थान के लिए पराक्रम करे, कर्म बाधायो को काटकर मुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़े । हम भी यह मान्यता हृदयगम करते हुए मुक्ति पथ पर अग्रसर हो, यही मेरी कामना है । सब्जी मण्डी, दिल्ली २५-३-१९५१

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